देहरादून: कहते हैं लोकतंत्र में प्रजा की आवाज यानी जनता की आवाज सर्वोपरी होती है, लेकिन ये कहावत मात्र चुनाव तक ही सही लगती है, चुनाव के बाद तो वैसे भी जनता को सब भूल जाते हैं, चाहे वह राजनैतिक दल सत्ता में हो या नहीं। बात अगर उत्तराखंड की त्रिवेंद्र सरकार की करें तो लगता है त्रिवेंद्र सरकार भी जनता से किए गए कई ऐसे प्रलोभन वाले वादों को भूल गए हैं जिनको लेकर उत्तराखंड की जनता ने बीजेपी को प्रचंड बहुमत दिया। त्रिवेंद्र सरकार को प्रदेश के युवा ने इसी सोच समझ के साथ वोट किया था, कि प्रदेश में बीजेपी की सरकार आते ही नौकरियों के द्धार बेरोजगार युवाओं के लिए खुलेंगे। लेकिन त्रिवेंद्र सरकार इस एक साल में उन बेराजगार युवाओं की उम्मीद पर खरा नहीं उतर पाई है जो सपने सरकार बनाते समय बेरोगार युवाओं ने देखे थे।
बेराजगारों पर लाठी, माननियों पर कृपा
गैरसैंण में बजट सत्र आयोजित कराकर जहां त्रिवेंद्र सरकार अपनी पीठ खुद ही थपथपा रही है, वहीं इस बजट सत्र में सरकार के द्धारा विधायकों और मंत्रियों के साथ विधानसभा अध्यक्ष और उपाध्यक्ष का वेतन बढाए जाने से आम जनता के बीच त्रिवेंद्र सरकार की खूब किरकिरी हो रही है, सरकार के इस फैसले का शोशल साईट पर भी खूब मजाक उडाया जा रहा है, वहीं बेरोजगार इसे अपने साथ अन्याय बता रहे हैं। खास बात ये है कि रोजगार कि मांग को लेकर जिस दिन देहरादून में युवा सडक पर अपना विरोध जताकर सरकार से रोजगार की मांग कर रहे थे, उसी दिन त्रिवेंद्र सरकार ने गैरसैंण में बजट सत्र के दौरान माननीयों के वेतन में 3 प्रतिशत का भारी भरकम इजाफा कर दिया। जिससे सवाल खडे हो रहे हैं कि, त्रिवेंद्र सरकार के इस फैसले के पीछे की वजह क्या है।
रोजगार न दे पाने के पीछे सरकार का तर्क
पिछले एक साल में त्रिवेंद्र सरकार के सामने जब-जब ये सवाल पूछा गया कि, आखिर रोजगार न देने में सरकार कहां पर नाकाम हो रही है। तो प्रदेश के मुखिया के साथ सरकार में शामिल लोग यही जवाब देते आए कि, प्रदेश की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है और यदि प्रदेश में खाली पदों को सरकार ने भरा तो प्रदेश की आर्थिक स्थिति खराब हो जाएगी। ऐसे में सवाल ये उठता है कि जब बेरोजगारों को रोजगार देने के पीछे सरकार आर्थिक स्थिति को आधार बताती है, तो माननीयों का वेतन बढाने में सरकार को तंग आर्थिक हालात क्यों नजर नहीं आते हैं।
जनता के खजाने पर पडेगा भार
माननीयों का वेतन अप्रैल महीने से बढा हुआ मिलेगा, जिसका फायदा सभी विधायकों के साथ पूर्व विधायकों को भी मिलेगा, यानी त्रिवेंद्र सरकार ने जो फैसला लिया है उससे विधायकों को जहां बढे हुए वेतन का लाभ मिलेगा, वहीं पूर्व विधायकों की पेंशन में भी इजाफ हो गया है। जिससे कहा जा सकता है कि सरकार ने सभी विधायकों और पूर्व विधयाकों को खुश कर दिया है। बढाए गए वेतन का भार सीधे जनता के खजाने पर पडेगा। यानी हर महीने 1 करोड से ज्यादा का भार वेतन बढने से सरकार के खजाने यानी जनता की गढाई कमाई पर पडेगा।
सौदा जब फायदे का, तो विपक्ष भी है मौन
कहते है जब इंशान को किसी भी रूप में फायदा हो रहा हो और उसका बोझ किसी पर भी पड रहा हो तो, इंसान चुप ही नजर आता है और यही कुछ विपक्ष की भूमिका अदा कर रही कांग्रेस में भी देखने को मिल रहा है। गैरसैंण में बजट सत्र के दौरान कई मसलों पर सरकार को जहां कांग्रेस ने खूब घेरा लेकिन, जब बारी वेतन बढाए जाने वाले विधेयक की आई तो, कांग्रेस की तरफ से मौन धारण कर लिया गया।
सवाल जो सरकार पर खडे होते हैं
क्या उत्तराखंड सरकार बताएंगी कि माननीयों के वेतन बढाने के पीछे की वजह क्या है?
बेरोजगारों को रोजगार नहीं और माननीयों के वेतन में इजाफे की वजह क्या है?
प्रदेश पर जब 50 हजार करोड रूपये का कर्ज हो चुका है, तो ऐसी क्या नौबत आई कि सरकार को माननीयों पर मेहराबानी दिखानी पड रही है?
कर्मचारी संगठन वेतन बढाने की मांग करे तो, सरकार उन्हें नसीहत देती है कि वह वेतन बढाने के लिए आंदोलन न करे बल्कि, प्रदेश हित में काम करे लेकिन, माननीयों का वेतन बिना मांग के बढ जाता है?
सरकार ने जितना वेतन बढाया है और उसका भार प्रदेश के खजाने पर पडेगा, क्या उतने उस भार से प्रदेश के युवाओं को रोजगार नहीं दिया जा सकता था, जिससे कई परिवारों को दो वक्त की रोजी-रोटी का इंतजाम हो जाता?