देश भर में मनाई जा रही ‘रामायण’ के रचयिता महर्षि वाल्मीकि की जयंती

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देहरादून: आज महर्षि वाल्मीकि जयंती है। आश्विन माह में शरद पूर्णिमा के दिन महर्षि वाल्मीकि का जन्म हुआ था। महर्षि वाल्मीकि वैदिक काल के महान ऋषि हैं। महर्षि वाल्मीकि को रामायण महाकाव्य के रचयिता के रूप में जाना जाता है। महर्षि वाल्मीकि ने संस्कृत में रामायण की रचना की थी। ऐसा माना जाता है कि वाल्मीकि को कई भाषाओं का ज्ञान था और वो एक कवि के तौर पर भी जाने जाते थे। वाल्मीकि जयंती पर भक्त मंदिरों में उनकी पूजा करते हैं और साथ ही इस दिन भगवान राम और महर्षि वाल्मीकि की झांकियां भी देखने को मिल जाती हैं। भगवार श्रीराम के भक्‍त वाल्‍मीकि ने संस्कृत भाषा में ‘रामायण’ की रचना की थी। इस अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत कई नेताओं ने लोगों को बधाई दी है।

महर्ष‍ि वाल्मीकि का असली नाम रत्‍नाकर बताया जाता है। कहा जाता है कि इनका पालन पोषण भील समुदाय में हुआ था। हालांकि एक और कथा के अनुसार, महर्ष‍ि वाल्मीकि का जन्‍म महर्षि कश्यप और अदिति के नवम पुत्र वरुण से हुआ था। इनकी माता का नाम चर्षणी था और भृगु को इनका भ्राता बताया गया है। उपनिषद में मौजूद विवरण के अनुसार, महर्ष‍ि वाल्मीकि को अपने भाई भृगु की तरह ही परम ज्ञान प्राप्‍त हुआ था।

विश्व का पहला महाकाव्य रामायण लिखकर महर्षि वाल्मीकि ने आदि कवि होने का गौरव पाया। रामायण प्रथम महाकाव्य है जो भगवान श्रीराम के जीवन की प्रमुख घटनाओं को काव्य के रूप में सुनाता है। ज्ञान प्राप्ति के बाद महर्षि वाल्मीकि ने रामायण ग्रंथ की रचना की। किवदंती के अनुसार महर्षि वाल्मीकि ने एक स्थान पर बैठकर घोर तपस्या की, जिससे उनके शरीर पर मिट्टी की बांबी बन गई। मिट्टी की बांबी को वाल्मीकि कहते हैं, इसलिए उन्हें वाल्मीकि नाम से बुलाया जाने लगा।

महर्षि बनने से पूर्व वाल्मीकि, रत्नाकर नाम से जाने जाते थे। नारद मुनि ने उन्हें राम नाम जपने की सलाह दी, जब श्रीराम ने सीता का त्याग कर दिया तब महर्षि वाल्मीकि ने ही इनको आश्रय दिया। उनके आश्रम में ही माता सीता ने लव-कुश को जन्म दिया। जब श्रीराम से अश्वमेध यज्ञ किया तो लव कुश ने महर्षि वाल्मीकि के आश्रम में यज्ञ के घोड़े को बांध लिया। सीता जी ने अपने वनवास का अंतिम काल महर्षि वाल्मीकि के आश्रम में ही व्यतीत किया।

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