देहरादून: हर वर्ष नवंबर माह की 14 तारीख को देश भर में भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू का जन्मदिवस ‘बाल दिवस’ के रूप में मनाया जाता है। इसी दिन राजधानी देहरादून के परेड ग्राउंड में समय-समय पर कोई न कोई मेला आयोजित होता रहता है, जहां लाखों की संख्या में दूनवासी अपने परिवार या दोस्तों के साथ आते हैं। शायद ही कभी किसी ने परेड ग्राउंड में सड़क किनारे रह रहे उन बच्चों पर ध्यान दिया हो, जो मेले की चकाचौंध से दूर अंधकार में जीवनयापन कर रहे हैं।
यहां रह रहे परिवार मूल रूप से कहां के हैं, इसका किसी को नहीं मालूम, लेकिन इतना पता है कि उनके सिर की छत के लिए देश के न किसी कोने में जगह है, न किसी राजनेता को परवाह है। यहां अपनी मां के साथ खाना बनाने में मदद कर रही एक 10 साल की बालिका ने बताया कि वह पढ़ना चाहती है, लेकिन कुछ कारणों से हमेशा कोई न कोई रुकावट आ जाती है। वहीं उसके बड़े भाई ने बताया कि कई लोग अपने साथ पढ़ने ले जाने की बात करते हैं, लेकिन कैसे किसी अंजान व्यक्ति पर वह भरोसा कर लें। इन गरीब भाई-बहनों का मानना है कि बाल मौलिक अधिकारों जैसी बातें उनके मुंह से अच्छी लगती हैं, जिनका पेट भरा हो और तन ढकने के लिए पर्याप्त कपड़ा हो। उन पर नहीं, जिनको इतना नहीं पता कि रात में सूखी रोटी मिलेगी या गरम।
देश भर की नहीं सिर्फ अपने शहर की बात की जाए तो आए दिन शहर के मुख्य मार्गों पर हम बच्चों को भीख मांगते, मजदूरी करते, गुब्बारे बेचते या गाड़ी साफ करते हुए देख सकते हैं। बच्चों के लिए सबसे सुरक्षित माने जाने वाले उनके स्कूलों में भी यौन उत्पीड़न की घटनाएं घटित हो रही हैं।
पिछले दिनों प्रदेश सरकार से राजधानी में ही बालिकाओं की सुरक्षा को लेकर सवाल किए गए थे। बात चाहे राष्ट्रीय दृष्टिबाधित संस्थान में एक शिक्षक पर लगे यौन उत्पीड़न के आरोप हो या जीआरडी स्कूल में बालिका के साथ हुए दुष्कर्म को छुपाने का मामला हो, सुरक्षा की दृष्टि से प्रदेश सरकार बच्चों को उनके अधिकार प्रदान करने में असफल रही है।
अक्सर राजनीतिक गलियारों में उत्तराखंड को एक छोटा राज्य माना जाता है, सोचने वाली बात है कि जब एक छोटे से शहर उत्तराखंड की डबल इंजन सरकार इन बच्चों को उनके अधिकार प्रदान करने में असफल साबित हो रही है तो देश के बड़े-बड़े राज्यों का तो भगवान ही मालिक है।
गौरतलब है कि 20 नवंबर 1989 को संयुक्त राष्ट्र की आम सभा द्वारा ‘बाल अधिकार समझौते’ को पारित किया गया था। इस समझौते पर विश्व के 193 राष्ट्रों की सरकारों ने हस्ताक्षर करते हुए अपने देश में सभी बच्चों को जाति, धर्म, रंग, लिंग, भाषा, संपति, योग्यता आदि के आधार पर बिना किसी भेदभाव के संरक्षण देने का वचन दिया है। केवल दो राष्ट्रों अमेरिका और सोमालिया ने अब तक इस पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं। इस बाल अधिकार समझौता पर भारत ने 1992 में हस्ताक्षर कर अपनी प्रतिबद्धता व्यक्त की थी। बच्चों के ये अधिकार चार मूल सिद्धांतों पर आधारित हैं, इनमें जीने का अधिकार, सुरक्षा का अधिकार, विकास एवं सहभागिता का अधिकार शामिल है। यह तो साफ जाहिर है कि अपने अधिकारों से यह बच्चे वंचित हैं, साफ तौर पर केंद्र और प्रदेश सरकार बच्चों को मौलिक अधिकार प्रदान करने में नाकामयाब रही है।