नैनीताल: उत्तराखंड वन निगम ने वन मंत्री पर गंभीर आरोप लगाए हैं। यह आरोप बाकायदा हाईकोर्ट में दिए हलफनामा में लगाए हैं। निगम ने मामले में वन मंत्री पर जबरदस्ती हस्तक्षेप का आरोप लगाया है। हालाँकि माना जा रहा है कि, निगम के अधिकारीयों ने जानबूझकर कोर्ट में वह कागज नहीं लगाए जिसमे सर्वसम्मति से फैसला होना दिखाया गया। मुख्य न्यायाधीश वाली पीठ इस मामले की सुनवाई करेगी।
मामले के अनुसार, कर्मचारियों से सम्बंधित मामले में निगम को हाईकोर्ट से झटका लगा था। जिसके बाद निगम ने विशेष अपील के जरिए दोबारा से हाईकोर्ट जाने का निर्णय लिया। नियमानुसार यह विशेष अपील फैसले के बाद 30 दिनों के भीतर करनी होती है, लेकिन निगम ने यह समयावधि समाप्त होने के बाद की है। देरी से अपील करने का कारण बताते हुए निगम ने हलफनामा भी दायर किया है। इसमे निगम ने कोर्ट से कहा कि, कोर्ट के फैसले के बाद 4 जुलाई 2017 को वन मंत्री की अध्यक्षता में एक बैठक आयोजित की गई, जिसमे निगम के अपील के फैसले को वन मंत्री ने स्थगित कर दिया। जिसके बाद मंत्री के दबाव के चलते समय पर अपील नहीं की जा सकी। निगम के प्रभागी लॉग इन अधिकारी बीडी हरबोला ने यह बात शपथ पत्र में कही है।
हालाँकि माना जा रहा है कि, वन मंत्री की अध्यक्षता वाली बैठक में सभी अधिकारी मौजूद रहे और बैठक में सभी निर्णय सर्वसम्मति से ही लिए गए। साथ ही बैठक के निर्णयों की प्रतिलिपि भी निजी सचिव वन मंत्री, निजी सचिव मुख्य सचिव, अपर सचिव वित्त, प्रमुख वन संरक्षक और प्रबंध निदेशक वन विकास निगम को उपलब्ध कराई गई। बावजूद इसके निगम द्वारा वन मंत्री को पूरी तरह जिम्मेदार ठहराने से कई तरह की चर्चाओं को जोर मिला है।
वहीँ मामले में हैलो उत्तराखंड न्यूज़ से बातचीत में निगम के एमडी मोनीश मलिक ने कहा कि, उनकी नियुक्ति इस वर्ष के अप्रैल माह में हुई है, फिलहाल उन्हें मामले के बारे में जानकारी नहीं है। हालाँकि उन्होंने ये भी साफ़ किया कि, निगम में एमडी के होने पर मंत्री की किसी भी तरह की भूमिका नहीं रहती है।