देहरादून: बीते दिनों वैश्य नर्सिंग होम पर नवजात को गायब करने का गंभीर आरोप लगा। जिसके चलते पूरे शहर में हडकंप मच गया था। इस मामले को अभी कुछ दिन भी नहीं बीते थे कि, एक और व्यक्ति ने इसी तरह का आरोप अस्पताल पर लगाया है। रूडकी निवासी संजय पाठक ने अस्पताल पर आरोप लगाया है कि, जून 2015 में उनके मरीज के साथ भी ऐसा ही वाकया किया गया था।
हैल्लो उत्तराखंड न्यूज़ को जानकारी देते हुए संजय पाठक ने बताया कि, 16 जून को उनकी पत्नी ने एक बच्चे को जन्म दिया, जिसके बाद डॉक्टर वैश्य द्वारा उनके बच्चे के लंग्स में इन्फेक्शन होना बताया और इलाज के नाम पर कई हज़ार रूपये लिए गये। उसके बाद कभी अस्पताल बच्चे को स्वस्थ होने की बात करता रहा तो कभी हालत गंभीर होना बताया गया। इसके बाद 19 जून की रात को अस्पताल प्रशासन ने उनको बताया कि उनके बच्चे की मौत हो चुकी है। फिर अस्पताल की सलाह पर उसको दफनाया गया। लेकिन अगले दिन वहां पर केवल गड्डा खुदा था और बच्चे का शव गायब था व उसके कपड़े वहां बिखरे पड़े थे। इस पर शक होने के चलते उन्होंने नालापानी चोकी पुलिस से शिकायत की, जिस पर पुलिस ने जांच का आश्वासन दिया, लेकिन इतने साल बीत जाने के बाद भी आज तक पुलिस ने मामले में कुछ भी नहीं किया।
बता दें कि इससे पहले कुछ दिन पूर्व भी अस्पताल पर आरोप लगे थे कि, नवजात बच्ची के जन्म के बाद ईलाज के लिए वैश्य नर्सिंग होम में शिफ्ट करने के बाद उसकी मौत हो गई, साथ ही अस्पताल ने नवजात बच्ची को लड़का बना दिया और परिजनों को शव सौंपकर अस्पताल से स्वीपर भेजकर शव दफना दिया। अगले दिन परिजन बच्चे को दफन करने वाले स्थान पर पहुंचे तो बच्चे का शव वहां से गायब मिला।
मामले के अनुसार, चकराता रोड विजय पार्क निवासी गौरव ने अपनी पत्नी को 8 जुलाई को प्रसव पीड़ा होने पर दून के चैतन्य नर्सिंग होम में भर्ती कराया था। जहां महिला ने एक बच्ची को जन्म दिया। बच्ची के जन्म के बाद उसकी तबियत खराब होने पर डाक्टरों ने बच्ची को शहर के वैश्य नर्सिंग होम में भर्ती करने की सलाह दी। जिसके बाद परिजनों ने वैश्य नर्सिंग होम में नवजात बच्ची को भर्ती कराया गया। जिसके बाद बच्चे का ईलाज शुरू किया गया। इस दौरान रात्रि में 2 बजे अस्पताल में नवजात की मौत हो गई। नवजात के पिता का आरोप है कि वैश्य अस्पताल ने नवजात बच्चे की मौत के बाद उसका चेहरा बिना दिखाये सफेद कपड़ा मंगवाकर उनके साथ स्वीपर को भेज दिया। वही शव को दफनाने के बाद घर आकर उन्होंने दोनों अस्पताल की रिपोर्ट देखी तो चैतन्य अस्पताल की रिपोर्ट में पुत्री पैदा होना दिखाया गया था, जबकि जहां बच्चे का ईलाज हुआ उसमें पुत्री के जगह पुत्र दर्शाया गया। इससे परिजनों को कुछ शंका हुई और परिजन ने दोनों अस्पताल में रिपोर्ट के बारे में वैश्य अस्पताल को बताया।
परिजन ने फिर डीएनए टेस्ट कराने की बात कही। परिजनों का शक तब यकीन में बदल गया जब वो 10 जुलाई को दफनाये गये स्थान पर दूध चढ़ाने गये। जहाँ जमीन खुदी थी, साथ ही बच्चे का शव गायब होने से परिजन सकते में आ गये और डालनवाला पुलिस में शिकायत दर्ज कराई।
वहीँ इस गंभीर आरोप पर वैश्य अस्पताल प्रबंधन व डॉक्टर विपिन वैश्य का कहना है कि गलती से नवजात बच्चे की रिपोर्ट पर फीमेल के स्थान पर मेल दर्ज हो गया। साथ ही उन्होंने कहा कि, बच्ची के परिजन स्वयं उसे दफ़नाने के लिए गये तथा अस्पताल के स्वीपर को गड्डा खोदने के लिए साथ ले गये। उन्होंने कहा कि अस्पताल की सभी सीसीटीवी फुटेज पुलिस को दे दी गई है। पुलिस की जाँच से सब स्पष्ट हो जायेगा। इसके आलावा संजय पाठक के 2015 वाले मामले पर उन्होंने कहा कि, ऐसा कोई मामला उनके संज्ञान में नहीं है।