देहरादून: काल के कपाल पर लिखता हूं, मिटाता हूं…, हार नहीं मानूंगा, रार नहीं ठानूंगा….। काल के कपाल पर लिखने वाले कवि आज काल से लड़ रहे हैं. पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी लंबे समय से बीमारी से झूझ रहे हैं। कई बार अस्पताल में भर्ती भी हुए, लेकिन हर बार स्वस्थ होकर वापस घर लौट जाते थे। आज पिछले करीब 45 दिनों ने एम्स में उनका इलाज चल रहा है। डॉक्टर जब आशा छोड़ देते हैं, अटल जी फिर से उनके लिए एक नई आशा और उम्मीद जगा देते हैं। एक ऐसे नेता, जिनकी दुनिया दीवानी है। और शायद उनको लोग वार्षों-वर्षों तक याद करते भी रहेंगे। ऐसा नेता, जिनको सुनने के लिए लोग दूर-दूर से जाते और आते। भाषण सनुने के लिए जहां खड़े हो जाते, अटल जी को सुनते हुए वहीं, जम जाते। काल के कपाल पर लिखने और मिटाने वाले पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का उत्तराखंड से भी गहरा नाता रहा था। खास नाता…। परिवार सा नाता…।
उत्तराखंड पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की देन है। इस पर लोगों की राय अलग हो सकती है। ये बहस का विष्ाय भी हो सकता है, लेकिन करोड़ों दिलों की धड़कन, हर राजनीतिक दल के नेताओं के चहेते वाजपेयी जी का उत्तराखंड, खासकर मसूरी और देहरादून से गहरा नाता रहा है। अटल जी मौका लगते ही मसूरी की शांत वादियोंं का दीदार करने चले आते और दो-चार दिन यहां रहकर जाते थे।
अटल जी ने खुद भी कई बार इस बात का जिक्र किया कि देहरादून से उनका दिल्ल का नाता है। देहरादून में अटल बिहारी वाजपेयी का ठिकाना मित्तल परिवार का पैतृक आवास हुआ करता था। जब भी वो दून आते कुछ वक्त मित्तल परिवार के बीच जरूर गुजारते। जनसंघ से जुड़े रहे स्वर्गीय नरेंद्र स्वरूप मित्तल अटल जी के बेहद करीब थे। अटल जी की यही खूबी उनको दूसरे नेताओं से अलग करती थी। पूर्व प्रधानमंत्री वाजपेयी स्वाभाव से जितने सरल थे, व्यवहार के उतने की कुशल थे। कार्यकर्ता से लेकर आम व्यक्ति लोगों तक बड़े ही सहज और सरल अंदाज में मिलते थे।
काल के कपाल पर लिखता हूं, मिटाता हूं…., देश कोई जमीं का दुकड़ा नहीं…। ऐसी ना जाने कितनी ही कविताएं उन्होंने लिखीं, जिनको आज हर कोई याद कर रहा है। एम्स पंहुच रहे नेता खुद को भावुक होने से नहीं रोक पा रहे हैं। हर दल का नेता उनके दर्शन करने को लेकर आतुर है। ऐसी हस्तियां कम ही होती हैं, जिनकी लोकप्रियता इतनी होती है। ये केवल लोकप्रियता का मामला भी नहीं है। ये अटल जी के विराट व्यक्तित्व का मसला भी है।
अटल बिहारी वाजपेयी ने खुद को तो राजनीति में स्थापित किया ही दूसरी पंक्ति के नेता भी तैयार किए। सुसमा स्वराज से लेकर तमाम ऐसे नेता हैं, जिनको अटल जी ने आगे बढ़ाया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को बनाने में भी उनका ही सबसे बड़ा हाथ रहा। उन्होंने नरेंद्र मोदी को गुजरात का सीएम बनाने के लिए कहा था, जबिक उस वक्त माेदी विधायक भी नहीं चुने गए थे।
गठबंधन की राजनीति के भी अटल जी पुरोधा रहे। आज जब गठबंधन को लेकर देश में बहस छिड़ी हुई है। राज्यों से लेकर केंद्र तक गठबंधन से ही चल रहे हैं। गठबंधन की हर पार्टी को अपने लिए मंत्री पद चाहिए। बावजूद इसके गठबंधन टूट जाते हैं। लेकिन, अटल जी ने गठबंधन की सरकार को भी पूरे पांच साल चलाया था। उनको सत्ता का भी लालच नहीं रहा। यही वजह थी कि उनको 13 दिन में अपने पद से त्याग पत्र देना पड़ा था। वे चाहते तो एक सीट खरीद लेतेे या किसी दूसरे दल के सांसद को मंत्री पद देकर अपनी सरकार बचा सकते थे, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया।