अल्मोड़ा: उत्तराखण्ड के प्रसिद्ध जन कवि गिरीश चन्द्र तिवारी ‘‘गिर्दा’’ की आठवीं पुण्यतिथि पर सांस्कृतिक नगरी अल्मोड़ा में उन्हें श्रद्धांजलि दी गई। बता दें कि गिर्दा का जन्म 9 सितंबर, 1945 को अल्मोड़ा के ज्योली हवालबाग गांव में हंसादत्त तिवाड़ी और जीवंती तिवाड़ी के घर हुआ था। गिर्दा मूलतः कुमाउंनी तथा हिन्दी के कवि हैं, लेकिन उन्होंने लोक पंरपराओं के साथ चलते हुए लोक संस्कृति के क्षेत्र में अपनी एक अलग पहचान बनायी। वह आजीवन जन संघर्षों से जुड़े रहे और अपनी कविताओं में जन पीड़ा को सशक्त अभिव्यक्ति दी। गिर्दा ने ‘अन्धायुग’, ‘अंधेरी नगरी’, ‘थैंक्यू मिस्टर ग्लाड’, ‘भारत दुर्दशा’ ‘नगाड़े खामोश हैं’ तथा ‘धनुष यज्ञ’ नाटकों का लेखन किया।
गिर्दा को याद करते हुए आन्दोलनकारी पी.सी तिवारी ने कहा कि गिर्दा ने ताउम्र संघर्ष किया। उन्हीं संघर्षो को वह अपने जनगीतों में समाहित करते थे। गिर्दा दमन, शोषण, अत्याचार के खिलाफ लड़ते रहे। वह हमेशा गरीब, किसान, आम लोगों की विचारधारा का प्रतिनिधित्व किया करते थे। उनके गाए जनगीत सड़क पर चलने वाले आम लोगों के संघर्ष के लिए आज प्रासांगिक हैं।
वहीं वरिष्ठ पत्रकार व रंगकर्मी नवीन बिष्ट कहते हैं कि गिर्दा जिस अंदाज में सड़क पर चलने वाले आम आदमी के संघर्ष और उसकी पीड़ा को अपने गीतों के माध्यम से स्वर देकर गाते थे आज हम भी उन्हें उन्हीं के अंदाज में याद कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि गिर्दा कभी बड़ी बड़ी गोष्ठियों में बैठकर समाज की पीड़ा पर चिंतन नहीं करते थे बल्कि सड़क पर ही जनगीत ही व आम लोगों के बीच ही जनगीतों के माध्यम से उनके दर्द को उठाते थे।