देहरादून। बीते 28 दिसंबर को तीन तलाक के मुद्दे पर लोकसभा में बिल पारित हुआ तो मुस्लिम समुदाय की महिलाओं में खुसी की लहार दौड गयी। लेकिन तीन तलाक की लड़ाई में उत्तराखंड की मुस्लिम महिला शायरा बानो का अहम योगदान रहा है। शायरा ने अपने पति के खिलाफ सबसे पहले कोर्ट में मुकदमा दर्ज किया था। जिसके बाद तीन तलाक पर फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने 22 अगस्त को इसे असंवैधानिक घोषित कर दिया था।
न जाने देशभर में कितने मुस्लिम महिलाओं को तीन तलाक का सामना करना पड़ा होगा । लेकिन उन सब पीड़ित महिलाओं की एक आवाज बनी 38 साल की शायरा बानो। शायरा उत्तराखंड के काशीपुर की रहने वाली है, जिसकी शादी 2002 में इलाहाबाद के प्रॉपर्टी डीलर रिजवान के साथ हुई थी।
शायरा के पति का तीन तलाक के पीछे का कारण ससुराल वाले की तरफ से कार की मांग थी। जिसके लिए रिजवान शायरा के मायके वालों से चार-पांच लाख रुपये कैश की डिमांड करता था। शायरा के मायके वालों की माली हालत ऐसी नहीं थी कि वह यह मांग पूरी कर सकें। शायरा का एक 13 साल का बेटा और 11 साल की बेटी भी थी। रिजवान हर दिन छोटी-छोटी बातों पर झगड़ा करता था।
अप्रैल 2015 में शायरा को उसके ससुराली मुरादाबाद रेलवे स्टेशन छोड़कर चले गए थे। शायरा के घरवाले उसे मुरादाबाद रेलवे स्टेशन से काशीपुर ले आए जिसके बाद शायरा का पति अक्सर उसे लौट आने को कहता था। लेकिन अक्टूबर में रिजवान ने शायरा को टेलीग्राम के जरिए तलाकनामा भेज दिया। तलाकनामे को देख शायरा चौंक गयी और एक मुफ्ती के पास गई तो उन्होंने कहा कि टेलीग्राम से भेजा गया तलाक जायज है।
मुफ्तियों के ऐसे फैसलों से न जाने कितनी मुस्लिम महिलाओं का तलाक हो गया लेकिन लोकसभा में जब तीन तलाक पर बिल पास हुआ तो उन सब महिलाओं का खुशी का ठिकाना नहीं रहा।