देहरादून: उत्तराखंड विधानसभा में भी अब मनोनीत एंग्लो-इंडियन सदस्य नहीं दिखाई देंगे। मोदी सरकार के फैसले के बाद एंग्ल- इंडियन पद पर मनोनयन का प्रावधान खत्म करने का असर उत्तराखंड पर भी होगा। यहां अब किसी एंग्लो-इंडियन सदस्य का मनोनयन नहीं किया जाएगा।
उत्तराखंड विधानसभा में आज एससी-एसटी आरक्षण की अवधि बढाने के लिए एक दिन का विशेष सत्र का आयोजन किया गया। इससे पहले हर बार एससी-एसटी कोटे के साथ एंग्लो-इंडियन कोटे की भी समय अवधि 10 साल बढ़ा दी जाती थी। उत्तराखंड विधानसभा में भी एंग्लो-इंडियन सदस्य अभी तक मनोनीत होते रहे। उत्तराखंड में अब तक 70 विधायक निर्वाचित और एक विधायक एंग्लो-इंडियन समुदाय से मनोनीत किया जाता रहा है। वर्तमान में उत्तराखंड विधानसभा में जार्ज आईवान ग्रेगरी मैन एंग्लो इंडियन समुदाय के प्रतिनिधि के तौर पर मनोनीत हैं,जो कि 2022 तक अपना कार्यकाल पूरा करेंगे। वहीं 2022 के बाद से कोई एंग्लो-इंडियन प्रतिनिधि मनोनीत नहीं किया जाएगा।
कौन हैं एंग्लो इंडियन
एंग्लो-इंडियन यानि अपने देश के ऐसे नागरिक जो भारत में रहते हों, लेकिन उनके पूर्वज अंग्रेज थे। भारत में एंग्लो-इंडियन समाज से आने वाले सदस्यों को सीधे विधानसभा में विधायक और लोकसभा में सांसद के पद पर मनोनीत किया जाता है। एंग्लो-इंडियन कोटे से विधायक और सांसद बनने वाले सदस्यों को विधायकों और सांसदों की तरह ही विधानसभा और लोकसभा मे वोटिंग का भी अधिकार रहता है। इन्हें मनोनीत करने वाले सियासी दल सदन में इनका इस्तेमाल अपना संख्या बल बढ़ाने के लिए भी करते हैं।