देहरादून: उत्तराखंड नवनिर्माण सेना के प्रतिनिधियों ने मसूरी में होने जा रही हिमालय राज्यों के सम्मलेन के परिपेक्ष में निति आयोग के समक्ष जिलाकार्यालय देहरादून के माध्यम से ज्ञापन प्रेषित कर राज्य हित में आवाज़ उठाई है। उन्होंने कहा है की प्रदेश देश को सबसे अधिक पर्यावरण सेवाएं प्रदान करा रहा है। लेकिन जिस प्रकार से राज्य के हालात है ।उसके विकास और संरक्षण के लिए कई कानूनों की ज़रूरत है। जिससे हिमालय राज्य का समृद्ध विकास हो सके।
वक्ताओं ने बताया की देश के 11 हिमालय राज्यों के सामने सतत विकास एक बड़ी चुनौती है। उन्हीं 11 राज्यों में एक से एक देव भूमि उत्तराखंड भी है ।प्रदेश से निकलने वाली गंगा नदी तंत्र ,यमुना नदी तंत्र ,काली नदी तंत्र देश की करोड़ों लोगो की आबादी की प्यास बुझाती हैं। उत्तराखंड में समस्त भूभाग के 64 .79 % वन क्षेत्र मौजूद है। जिसके चलते पर्यावरण की सेवा तथा संरक्षण एवं जलवायु संतुलन में उत्तराखंड राज्य अहम् भूमिका का निर्वाह करता है। हमारे पास प्रदेश में खनिजों के भण्डार या अन्य अत्यधिक आय के स्रोत तो नहीं किन्तु जल तथा वन रूपी बहुमूल्य सम्पदा के अपार भण्डार है।जिसे मूल्यों में परिवर्तित करें तो लगभग 106 अरब रुपए मूल्य के बराबर पर्यावरण सेवायें उत्तराखंड आज देश को प्रदान कर रहा है।
किन्तु इस समस्त संसाधनों के बाद भी प्रदेश की अर्थव्यस्था संतुलित नहीं हैं ।जिसके प्रमुख कारणों में प्रदेश में संचालित चारधाम यात्रा , हरिद्वार ,ऋषिकेश आने वाले लाखों श्रद्धालुओं की व्यस्थाओं हेतु खर्च तथा पर्वतीय क्षेत्र में आने वाली आने वाली आपदाओं( भूस्खलन , बादल फटना तथा बाढ़ इत्यादि) के चलते शिक्षा ,स्वास्थ तथा अन्य विकास योजनाओं पर लगने वाले धन का अधिकतम भाग , उत्तराखंड में पुनः निर्माण तथा राहत एवं बचाव कार्यों पर खर्च होता आ रहा है । जिसके कारण इसके विकास पर कार्य नही हो पा रहा है। संगठन ने आयोग से निम्न मांगे कर महत्वपूर्ण मुद्दों को उठायाहै।
संगठन की प्रमुख मांगे
- हिमालय राज्यों में समग्र विकास हेतु सामान कानून व्यस्था लागू हो / जिसके लिए अन्य हिमालय राज्यों की भांति उत्तराखंड में धारा 371 लगाई जाय ,ताकि प्रदेश भूमाफियाओं की सक्रियता पर अंकुश लगे।
- सामान कानून तथा सामान नियम को लागू करने हेतु जम्मू कश्मीर से धारा 370 तथा 35 ( A ) हटाई जाय।
- हिमालय राज्यों में पर्यावरण संरक्षण के नाम पर मानवीय तथा विकास विरोधी कानून ना बनायें जाएँ।
- मानवीय विकास तथा पर्यावरण संरक्षण से जुडी नीति निर्माण इस प्रकार हो की दोनों के समग्र विकास में किसी एक के कारण दूसरे को हानि ना पहुंचे।
- उत्तराखंड को जल तथा जंगल अर्थात पर्यावरण सेवाएं प्रदान करने हेतु हर वर्ष 10 हजार करोड़ की राशि ग्रीन बोनस के रूप में दी जाय ।
- राज्य में आने वाले लाखों श्रद्धालु पर खर्च तथा प्रदेश में असमय आने वाली आपदाओं( भूस्खलन, बादल फटना ,बाद इत्यादि )जनमानस तथा सम्पदा की हानि में पुनः निर्माण तथा रहत कार्यों हेतु वार्षिक अनुदान सुनिश्चित किया जाए।
- सड़क निर्माण , पेयजल , विधुत योजनाएं , स्वास्थ तथा शिक्षा जैसी मूलभूत विकास हेतु वन भूमि स्थानांतरण का अधिकार राज्य सरकार को दिया जाय ।
- हिमालय राज्यों में विकास योजनाएं तथा विधानसभा क्षेत्रों को निर्माण दोनों ही कार्य ,जनसँख्या के स्थान पर क्षेत्रफल तथा भौगोलिक तथा सीमा के आधार पर हो ।
संगठन ने बैठक से उत्तराखंड के परिपेक्ष में सार्थक तथा जन उपयोगी निर्णय निकल कर आयेंगें। जिसका प्रदेश के लोगों को लाभ होगा तथा प्रदेश की अर्थव्यस्था में सुधार होगा। इस मौके पर विलास गौड़, राजेश चमोली,सुशील कुमार,हरीश थापडियाल, जयकृत काण्डवाल,आदर्श, नीरज,मनोज, सुनंदा थापा, अंकित, सुनीता छेत्री,राजेश कुमार,चरण सिंह इत्यादि मौजूद रहे।