नैनीताल: उत्तराखंड हाई कोर्ट ने अपने महत्वपूर्ण निर्णय में बाबा रामदेव की ‘दिव्य फार्मेसी’ कंपनी को झटका दिया है। कोर्ट ने उत्तराखंड जैव विविधता बोर्ड के आदेश के खिलाफ दायर उस याचिका को खारिज कर दिया है जिसमें बोर्ड ने जैव विधिधता अधिनियम 2002 के प्रावधानों के तहत कंपनी को होने वाले न्यायोचित लाभ का कुछ अंश किसानों के हित में अदा करने को कहा था। मामले की सुनवाई न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया की एकलपीठ में हुई। कोर्ट ने विगत 7 सितम्बर को निर्णय सुरक्षित रख लिया था।
मामले के अनुसार, योग गुरु रामदेव की दिव्य फार्मेसी कंपनी की ओर से उत्तराखंड जैव विविधता बोर्ड के आदेश के खिलाफ याचिका दायर की गई थी। इसमें कहा गया था कि उत्तराखंड जैव विविधता बोर्ड ने जैव विविधता अधिनियम के प्रावधानों के तहत दिव्य फार्मेसी कंपनी को जैविक संसाधनों के दोहन व उपयोग करने की खातिर 4.21 बिलियन राजस्व के बदले में 20.4 मिलियन राशि किसानों व स्थानीय समुदायो को अदा करने को कहा था।
याचिका में कहा गया था कि, उत्तराखंड जैव विविधता बोर्ड को ऐसा आदेश पारित करने का कोई अधिकार नही है। जैव विविधता बोर्ड अधिनियम भारतीय कंपनियों पर लागू नही होता है।
पक्षों की सुनवाई के बाद हाईकोर्ट की एकलपीठ ने 21 दिसंबर को फैसला सुनाया था। याचिका को खारिज करते हुए कहा कि, जैविक संसाधन राष्ट्र की संपत्ति है लेकिन यह उन स्वदेशी व स्थानीय समुदायो की भी संपत्ति है जिन्होंने इसे सदियो से संरक्षित रखा है।
कोर्ट ने कहा कि, उत्तराखंड में उच्च हिमालयी क्षेत्र में रहने वाले समुदाय अपने जैविक संसाधन के पारंपरिक हकदार है वे ना केवल इसे संरक्षित रखते है बल्कि उसकी जानकारी वे पीढ़ी दर पीढ़ी समाहित रखते है।