देहरादून: मोर्चा कार्यालय में पत्रकारों से वार्ता करते हुए जीएमवीएन के पूर्व उपाध्यक्ष एवं जनसंघर्ष मोर्चा अध्यक्ष रघुनाथ सिंह नेगी ने कहा कि, प्रदेश गठन के पश्चात् राष्ट्रीय दलों के दिल्ली में बैठे आकाओं की खिदमत/सेवा करने के फेर में प्रदेश का राजस्व सरकारी खजाने में आने के बजाए जेबों में जाता रहा, जिस कारण राजस्व लगातार घटता रहा और सरकारें बाजारू ऋण के सहारे चलने लगी।
नेगी ने कहा कि वर्ष 2016-17 में जहाँ बाजारू कर्ज 20,832 करोड़ था, वहीं आज बढ़कर लगभग 32,000 करोड़ (मूलधन की किश्तें घटाकर अनुमानित) हो गया। उक्त कर्ज का ब्याज जहाँ वर्ष 2015-16 में 1,214 करोड़ था, वहीं वर्ष 2016-17 में बढ़कर 1,535 करोड़ रूपये हो गया तथा वर्तमान में ब्याज की रकम लगभग 2,500 करोड़ तक पहुँच गयी।
नेगी ने कहा कि, वर्तमान सरकार ने बाजारू ऋण लेने में ज्यादा दिलचस्पी दिखायी तथा वर्ष 2017-18 में 6660 करोड़ तथा वर्ष 2018-19 (आज तक) लगभग 5750 करोड़ रूपया बाजारू कर्ज लगभग 8 फीसदी पर लिया गया। त्रिवेन्द्र सरकार ने इन पौने दो वर्ष में लगभग 12410 करोड़ रूपये कर्ज लेकर कीर्तिमान स्थापित कर दिया, यानि राजस्व लगातार घटता रहा और मुखिया की जेबें भरती रही।
मोर्चा ने हैरानी जतायी कि हजारों करोड़ रूपये की रकम सिर्फ विधायकों/मन्त्रियों के वेतन, भत्ते, ऋण के ब्याज की अदायगी, मौज-मस्ती/निधियाँ कर्मचारियों के वेतन व अन्य अयोजनागत प्रयोजनों में खर्च होती रही। प्रदेश के नाबार्ड व अन्य ऋणों का तो हिसाब ही असीमित है, जिसका ब्याज भी सरकार को चुकाना पड़ रहा है। मोर्चा ने चिन्ता व्यक्त की, कि सरकारें निजी हित छोड़कर राज्यहित में ध्यान दें।