आज एक दूसरे के साथ खेला जाता है भीषण युद्ध.. जाने क्यों…

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चंपावत: कुमाऊं की संस्कृति का अभिन्न अंग माने वाले ‘बग्वाल’ युद्ध संपन्न हो गया है जिसमे भीमताल विधायक रामसिंह कैड़ा समेत करीब 334 लोगो ने इस खेल में भाग लिया। 8 मिनट तक चले देवीधुरा बग्वाल,4 खामों के बीच खेली गई।

उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल में मां वाराही धाम में रक्षाबंधन के दिन को चंपावत जिले के देवीधुरा के स्थानीय लोग चार दलों में विभाजित होकर पत्थरों से युद्ध करते हैं। ज‌िसमें लोग एक दूसरे की जान के प्यासे हो जाते हैं।

जहां सबके लिये यह दिन रक्षाबंधन का दिन होता है वहीं देवीधुरा के लिये यह दिन पत्थर-युद्ध अर्थात ‘बग्वाल का दिवस’ होता है। इस पाषाण युद्ध को देखने देश के कोने-कोने से दर्शनार्थी आते हैं। इस युद्ध में चार खानों के दो दल एक दूसरे के ऊपर पत्थर बरसाते हैं।

इस पत्थरमार युद्ध को स्थानीय भाषा में ‘बग्वाल’ कहा जाता है।  हालांक‌ि प्रशासन ने अब इस परंपरा में बदलाव करते हुए फूलों से बग्वाल खेलने के न‌िर्देश द‌िए है। करीब पांच कुंतल नाशपाती व दो कुंटल फूलों से बग्वाल खेली गई। कुछ साल पहले तक यहां पत्थरों से बग्वाल खेली जाती थी और इसमें कई लोग सिर फूटने से घायल हो जाते थे।

वही आज के बग्वाल युद्ध के संपन्न होने के बाद जब हैलो उत्तराखंड ने डीएम चम्पावत से घायलों की संख्या के बारे में पुछा तो उन्होंने बताया कि इस परंपारिक युद्ध के दौरान कोई घायल नही हुआ है।

बग्वाल खेलने वाले अपने साथ बांस के बने फर्रे पत्थरों को रोकने के लिए रखते हैं।  मान्यता है की बग्वाल खेलने वाला व्यक्ति यदि पूर्णरूप से शुद्ध व पवित्रता रखता है तो उसे पत्थरों की चोट नहीं लगती है।

बग्वाल में एक व्यक्ति के रक्त के बराबर खून निकलने के बाद ही बग्वाल बंद की जाती है। मान्यता के मुताबिक चम्याल खाम की एक बुजुर्ग की तपस्या से प्रसन्न हो मां बाराही देवी ने महिला को आशीर्वाद दिया। जिसके बाद नर बलि बंद हो गई और बग्वाल शुरू हुई। बग्वाल की शुरुआत कब से हुई है, इसकी तिथि का प्रमाण नहीं मिलते हैं। अलबत्ता करीब तीसरी सदी से बग्वाल देवीधुरा में हो रही है।

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