पौड़ीः गर्मियों के दिनों में आपने पानी की समस्या को लेकर लोगों को परेशान होते हुए तो अक्सर देखा होगा। लेकिन ऐसा ही नजारा आपको यदि कड़ाके की सर्दियों में देखने को मिले तो आप उसे क्या कहेंगें।
दरअसल ऐसे ही विषम परिस्थियों से इन दिनों जूझ रहे हैं यमकेश्वर ब्लॉक के गहली ग्रामीण। यहां के ग्रामीणों की स्थिति ऐसी है कि लोगों के पास शौचालय तो हैं लेकिन दैनिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए पानी नहीं। ऐसे में सुबह 4 बजे से ही लोग अपना काम-धाम छोड़ केवल पानी के लिए लंबी-लंबी कतारों में लगने को मजबूर हैं। ग्रामीणों का कहना है कि यहां के वर्तमान विधायक इस पर ध्यान नहीं दे रहे हैं। जिसके कारण उनको सर्दियों में इस समस्या से दो चार होना पड़ रहा है।
पेय जल मंत्री प्रकाश पंत ने हैलो उत्तराखंड न्यूज़ से बात करते हुए बताया कि राज्य में 39967 बस्तियां है जिनकी पेयजल की समस्या को दूर करने के लिए सरकार योजना बना चुकी है। जिन्हे 2016 में सरकार द्वारा बंद कर दिया गया था। लेकिन 17100 ऐसी बस्तियां है जहां अभी भी सरकार अपनी योजना पहुंचा नहीं पायी है। साथ ही उन्होंने बताया कि सरकार ने बस्तियों में पेयजल की समस्या को दूर करने के लिए ग्राम पंचायतों को इसका जिम्मा सौंपा था। लेकिन ग्राम पंचायत सही तरह से इसकी देख रेख नहीं कर पायी जिसके चलते 10 से 12 हजार योजनाओं को सरकार ग्राम पंचायत से वापस लेने की रणनीति बना चुकी है। साथ ही उन्होंने बताया कि बस्तियों में पेयजल की समस्या आपदा के बाद से ज्यादा हुई है जिसमे कई स्रोत सुख गए है। पंत का कहना है कि सरकार द्वारा 40 लीटर प्रति व्यक्ति पेयजल आपूर्ति का लक्ष्य रखा गया है जिसे आने वाले समय में पूरा कर लिया जायेगा।
वहीं विधायक ऋतु खंडूरी का कहना है कि ग्रामीण क्षेत्रों में यह समस्या सालों से है। लेकिन जब तक छोटी पंपिंग योजनाओं को बड़ी योजनाओं से नहीं जोड़ेंगें तब तक लोगों की समस्याओं को दूर नहीं किया जा सकता है। इसका प्रमुख कारण यह भी है कि स्थानीय स्त्रोत सूखने लगे हैं, और हैण्डपंपों में आयरन की अत्यधिक मात्रा है जिसके कारण पंपों का पानी पीने योग्य नहीं है। वहीं पानी कनेक्शन को लेकर उनका कहना है कि पानी कम ही मात्रा में है और कनेक्शन ज्यादा बंटे हुए हैं जिसके कारण पानी यहां कम ही मात्रा में आ पाता है। हालांकि विधायक का कहना है आगामी कैबिनेट में हम इसके लिए बजट लाने जा रहे हैं, जिससे दूरस्थ गांवों में उत्पन हो रही ऐसे समस्याओं को दूर किया जा सके।
भले ही कनेक्शनों के माध्यम से पानी की किल्लत सामने आ रही हो, लेकिन यह भी सच है कि स्थानीय स्त्रोत सूखते जा रहे हैं और हम इसकी ओर ध्यान देने के बजाए कनैक्शन के पानी पर निर्भर होते जा रहे हैं। बता दें किय यह हाल तब है जब कड़ाके की सर्दियां हैं, तो जरा सोचिए गर्मियों के दिनों यहां के क्या हाल होंगें? यदि अभी भी हम अपने जल स्त्रोतों की ओर ध्यान नहीं देंगें तो वो दिन दूर नहीं जब हमारे सारे जल स्त्रोत सूख जायेंगे और हमें पानी के लिए मौहताज होना पड़े।