रुद्रप्रयाग : केदारनाथ यात्रा के आधार शिविर गौरीकुण्ड में चल रहे आपदा पुनर्निर्माण कार्यों में मानकों की जमकर धज्जियां उडाई जा रही हैं। बाड सुरक्षा दीवारों के निर्माण में रेत की जगह मिट्टी मिलाई जा रही है, तो कच्चे पत्थरों की गिट्टी प्रयोग में लाई जा रही है। वहीं विभाग के अभियंता स्वीकार तो कर रहे हैं कि रेत में शिल्ट तो है परन्तु अपनी लापरवाही को छुपाने के लिए तर्क भी दे रहे हैं।
वर्ष 2013 की केदारनाथ आपदा में गौरीकुण्ड का एक बडा हिस्सा बह गया था जिसके पुनर्निर्माण को लेकर लगातार कार्य चल रहे हैं। गौरीकुण्ड में बाड सुरक्षा दीवार निर्माण का कार्य सिंचाई विभाग के पास है और करीब 10 करोड रुपये की लागत से यहां पर दीवारों का निर्माण कार्य मंदाकिनी नदी के किनारे चल रहा है। निर्माण कार्यों में जहां रेत व क्रेशर की गिट्ट प्रयोग में लाई जानी थी वहीं ठेकेदारों के द्वारा कच्चे पत्थरों की गिट्टी तोडी जा रही है और खुदाई से निकलने वाली मिट्टी से दीवार निर्माण कार्य किया जा रहा है। स्थानीय लोगों ने कई बार इसकी शिकायत जिलाधिकारी से की है मगर ठेकेदार द्वारा गुणवत्ता सुधारने के वजाय लगातार निर्माण किया जा रहा है।
इस बारे में जब सिंचाई विभाग के सहायक अभियंता से पूछा गया तो उन्होने रेत में थेाडा बहुत मिट्टी होने की बात को स्वीकारा और तर्क दिया कि रेत को धो कर प्रयोग में लाया जा रहा है। जब्कि हकीकत यह है कि इतने बडे प्रोजेक्ट में मौके पर कहीं भी ना तो रेत दिखी और ना ही क्रेशर की गिट्टी।
पुनर्निर्माण कार्यों में अधिकारियों की मिलीभगत से किस तरह ठेकेदार अपनी चांदी काट रहे हैं और सुरक्षा दीवारों के नाम पर मानकों को दरकिनार कर रहे हैं जिसका खामियाजा आने वाले दिनों में स्थानीय लोगों को भुगतना पडेगा। करोड़ों रुपये पुनर्निर्माण के नाम पर सीधे ऊंचे पदों पर बैटे चुनिंदा लोगों की जेबों में जा रहे हैं। जीरो टॉलरेंस की बात करने वाली सरकार महज तमाशबीन बनी हुई है।