देहरादून: बच्चों के अधिकारों की रक्षा को लेकर गठित उत्तराखंड बाल अधिकार संरक्षण आयोग मैदानी क्षेत्रों तक ही सीमित रहा है। पहाड़ी क्षेत्रों में आयोग की सक्रियता कम ही देखने को मिलती है। जबकि पहाड़ी क्षेत्रों में भी बाल अधिकारों के संरक्षण का कार्य महत्वपूर्ण है। साथ ही पहाड़ी क्षेत्रों में बाल अधिकारों के प्रति अधिक जागरूकता फैलाने की भी जरूरत है। वर्तमान में पहाड़ी क्षेत्रों में बढ़ रही लगातार बाल शोषण की घटनाओं के चलते उन क्षेत्रों में आयोग की जरूरत और अधिक हो जाती है। इसके अलावा आयोग के विभिन्न सदस्यों द्वारा निरीक्षण को लेकर सदस्यों की भी सक्रियता भी कम ही देखी जा रही है। या यूं कहें कि आयोग केवल आई हुई शिकायतों के आधार पर ही कार्यवाही कर रहा है।
इन तमाम मुद्दों पर हैलो उत्तराखंड न्यूज़ से बातचीत में आयोग की सदस्या सीमा डोरा ने कहा कि, आयोग की कोशिश रहती है कि, वह बाल अधिकारों के संरक्षण को लेकर हर संभव कार्य करे। साथ ही कहा कि पहाड़ी क्षेत्रों में निरीक्षण को लेकर आयोग के पास उचित सुविधाएं नहीं है जिस कारण आयोग पहाड़ी क्षेत्रों में अधिक सक्रियता नहीं दिखा पाता है। हालांकि उन्होंने कहा कि कुछ पहाड़ी क्षेत्रों में आयोग के कुछ सदस्य सक्रिय हैं, लेकिन उचित सुविधाओं के अभाव में उन्हें भी परेशानियां झेलनी पड़ती है। उन्होंने कहा कि आयोग की अध्यक्षा ने सुविधाओं को लेकर सरकार से मांग की है और जैसे ही आयोग को सुविधाएं उपलब्ध होती हैं आयोग की सक्रियता देखने को मिलेगी। इसके अलावा उन्होंने कहा कि आयोग ने लोगों में जागरूकता फैलाने का कार्य किया है और इसका असर भी देखने को मिल रहा है।