नई दिल्ली: देश और दुनिया में चर्चित हो चुके राफेल डील का मामला अब सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है। मोदी सरकार और विपक्ष के बीच में तकरार की वजह बनी राफेल का मामला अब सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है। संसद की बहस से उठकर अब राफेल का मुद्दा सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है और सुप्रीम कोर्ट सुनवाई करने को भी तैयार हो गया है।
चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा कि इस पर अगले हफ्ते सुनवाई होगी। प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति ए.एम खानविलकर और न्यायमूर्ति डी.वाई चंद्रचूड़ की पीठ ने अधिवक्ता एम.एल शर्मा की इस बारे में दलीलों पर गौर किया कि उनकी अर्जी तत्काल सुनवायी के लिए सूचीबद्ध की जाए। शर्मा ने अपनी अर्जी में फ्रांस के साथ लड़ाकू विमान सौदे में विसंगतियों का आरोप लगाया है और उस पर रोक की मांग की है।
सुप्रीम कोर्ट में जो याचिका दाखिल की गई है, उसमें डील को रद्द करने और एफआईआर दर्ज करने और कानूनी कार्रवाई की मांग की गई है। याचिका में कहा गया है कि दो देशों के बीच हुई इस डील से भ्रष्टाचार हुआ है और ये रकम इन्हीं लोगों से वसूली जाए क्योंकि ये अनुच्छेद 253 के तहत संसद के माध्यम से नहीं की गई है।
राफेल सौदे को लेकर विवाद बढ़ने के बीच फ्रांस से 58000 करोड़ रुपये की लागत से भारत के 36 लड़ाकू विमानों को खरीदने के समूचे मामले को समझते हैंरू राफेल क्या है? राफेल अनेक भूमिकाएं निभाने वाला एवं दोहरे इंजन से लैस फ्रांसीसी लड़ाकू विमान है और इसका निर्माण डसॉल्ट एविएशन ने किया है। राफेल विमानों को वैश्विक स्तर पर सर्वाधिक सक्षम लड़ाकू विमान माना जाता है।
भारत ने 2007 में 126 मीडियम मल्टी रोल कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (एमएमआरसीए) को खरीदने की प्रक्रिया शुरू की थी, जब तत्कालीन रक्षा मंत्री ए के एंटनी ने भारतीय वायु सेना से प्रस्ताव को हरी झंडी दी थी। इस बड़े सौदे के दावेदारों में लॉकहीड मार्टिन के एफ-16, यूरोफाइटर टाइफून, रूस के मिग-35, स्वीडन के ग्रिपेन, बोइंग का एफध्ए-18 एस और डसॉल्ट एविएशन का राफेल शामिल था। लंबी प्रक्रिया के बाद दिसंबर 2012 में बोली लगाई गई। डसॉल्ट एविएशन सबसे कम बोली लगाने वाला निकला. मूल प्रस्ताव में 18 विमान फ्रांस में बनाए जाने थे जबकि 108 विमान भारत में हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड के साथ मिलकर तैयार किये जाने थे।
रिपोर्ट्स की मानें तो 2012 से लेकर 2014 के बीच बातचीत किसी नतीजे पर न पहुंचने की सबसे बड़ी वजह थी विमानों की गुणवत्ता का मामला। कहा गया कि डसाल्ट एविएशन भारत में बनने वाले विमानों की गुणवत्ता की जिम्मेदारी लेने को तैयार नहीं थी। साथ ही टेक्नोलॉजी ट्रांसफर को लेकर भी एकमत वाली स्थिति नहीं थी।