रुद्रप्रयाग: प्रदेश सरकार भले ही सरकारी स्कूलों में प्राथमिक शिक्षा को बढावा देने के लिए कई दावे कर रही हो, लेकिन कई जगह व्यवस्था पटरी से उतरती दिख रही है। ऐसा ही मामला रुद्रप्रयाग जिले में देखने को मिल रहा है, जहाँ पर 50 सरकारी प्राथमिक स्कूल जीर्ण-क्षीर्ण अवस्था में हैं। वहीँ 10 छात्र संख्या से कम वाले विद्यालयों को बन्द कर दिया गया है और अब 2 अन्य विद्यालय फिर बन्दी की कगार पर हैं।
रुद्रप्रयाग जनपद में राजकीय प्राथमिक विद्यालयों की कुल संख्या 538 है। इनमें से भी अधिकांश विद्यालय ऐसे हैं कि, जहां पर छात्र संख्या महज खानापूर्ति ही है। 10 छात्र संख्या से कम 12 विद्यालयों को तो बन्द कर दिया गया है और दो अन्य विद्यालय भी बन्दी की कगार पर हैं। यही नहीं 50 सरकारी स्कूल तो ऐसे हैं कि, जहां पर बच्चे मजबूरी में बैठने को मजबूर हैं। और इनमे दूरस्थ क्षेत्रों विद्यालय के साथ कई विद्यालय नगर क्षेत्रों के भी हैं। इन विद्यालयों में पढने वाले छात्रों को एक किमी के दायरे में आने वाले नजदीकी विद्यालयों में शिफट किया जा रहा है।
वहीं उत्तराखण्ड क्रान्तिदल ने स्कूलों के लगातार बन्द होने पर प्रदेश सरकार को जमकर लताडा है। उन्होंने कहा कि, सरकार का ध्यान सिर्फ देहरादून पर है यदि, पहाडों की ओर ध्यान दिया जाता तो आज स्कूल बन्द नहीं होते।
सरकारी स्कूलों के ये हालात तो एक छोटे से जिले रुद्रप्रयाग के हैं। अन्य जिलों के क्या हाल होंगे ये साफ तौर पर जाना जा सकता है लेकिन, जिस तरह से अविभावकों का सरकारी स्कूलों से मोह भंग हो रहा है और हर साल विद्यालय बन्द हो रहे हैं, इससे तो साफ है कि, सरकारों को इस दिशा में बेहतर प्रयास करने होंगे। अन्यथा आने वाले दिनों में राजकीय प्रथमिक विद्यालयों का नाम सिर्फ इतिहास बन कर रह जायेंगे।