हरिद्वार: रविवार को अखिल भारतीय ब्राह्मण एकता परिषद् उत्तराखण्ड द्वारा कनखल स्थित प्रदेश कार्यालय पर बैठक कर सरकार ने चार धाम श्राइन बोर्ड बनाने के फैसले को लेकर विरोध किया और चार धाम पुरोहित समाज को परिषद का पूरा समर्थन देने की घोषणा की है।
तीर्थ पुरोहित महापंचायत के संयोजक सुरेश सेमवाल ने कहा कि हम तिरुपति मंदिर की तरह संपन्न नहीं हैं। सरकार ने गंगोत्री-युमनोत्री धाम के लिए आपदा के समय से लेकर अभी तक एक भी रुपए नहीं दिया है। हम जजमान और स्थानीय लोगों के सहयोग से काम करते हैं। इतनी बड़ी मंजूरी को बिना पंडा समाज को विश्वास में लिए पास करना हजारों परिवारों को बेघर करने की सरकार की नियत को सहन नहीं किया जाएगा।
वहीँ परिषद के प्रदेश अध्यक्ष मनोज गौतम ने कहा कि तीर्थ पुरोहितों का अहित नहीं होने दिया जायेगा। चारधाम पर लागू होने वाला यह काला कानून हमारी सनातन संस्कृति को नष्ट करने वाला है, उन्होंने कहा कि सरकार के इस निर्णय के खिलाफ परिषद तीर्थपुरोहितों के पूरी तरह साथ है। सरकार की मंशा का हम घोर विरोध करते हैं। सनातन परंपरा को सरकार ने बदलने का निर्णय लेकर हिन्दू आस्था पर चोट की है।
प्रदेश संयोजक पं. बालकृष्ण शास्त्री ने कहा कि परिषद पुरोहित समाज का पूरा सहयोग करेगी और किसी भी कीमत पर सनातन संस्कृति का नुकसान नहीं होने दिया जायेगा। पंडा समाज को विश्वास में लिए बिना इतना बड़ा फैसला करना हजारों परिवारों को बेघर करने की सरकार की नियत को साफ दर्शा रहा है। सरकार मनमानी कर रही है। महापंचायत के महामंत्री हरीश डिमरी ने कहा कि महापंचायत ने आगे की रणनीति तय करने के लिए कोर कमेटी ने गठन का फैसला किया है। चार धाम श्राइन बोर्ड बनाने का सरकार के फैसले को लेकर विवाद शुरू हो गया। चारों धाम के तीर्थ पुरोहितों ने सरकार के इस निर्णय के खिलाफ सड़कों पर उतरने का ऐलान कर दिया। वहीँ तीर्थ पुरोहितों ने सरकार के इस निर्णय को काला कानून करार दिया है।
हरिद्वार के तीर्थपुरोहित पं. नितिन गौतम ने अपना विरोध जताते हुए कहा कि सरकार हिन्दू समाज के मन्दिरों के पीछे पड़ी है अन्य धर्मो के धार्मिक स्थल दिखाई नहीं दे रहे। हरिद्वार का तीर्थ पुरोहित समाज सरकार के इस फैसले का पूरी तरह विरोध करेगा।
पं. संजीव सेमवाल पूर्व अध्यक्ष गंगोत्री मन्दिर ने कहा कि चारधाम पुरोहित समाज में उत्तराखंड चारधाम श्राइन बोर्ड विधेयक-2019 को मंजूरी को लेकर गहरा आक्रोश बना हुआ है। अगर सरकार अपने निर्णय में बदलाव नहीं करती है तो विधानसभा घेराव के साथ ही उग्र आंदोलन किया जाएगा।