देहरादूनः अब प्रदेश भर के मदरसों में संस्कृत पढ़ाने की मांग उठी है। प्रदेश की मदरसा वेलफेयर सोसायटी के सदस्यों ने 8 दिसंबर को सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत को पत्र लिखकर इसकी मांग की है। प्रदेश की 207 मदरसों में 25,000 से अधिक बच्चे अध्ययन करते हैं।
एमडब्ल्यूएसयू की अध्यक्ष सिब्ते नबी ने हाल ही में मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत को लिखा है कि मदरसों (एसपीक्यूईएम) में गुणवत्ता शिक्षा प्रदान करने के लिए योजना के तहत संस्कृत के शिक्षकों की भर्ती के लिए अनुरोध किया गया है। कुछ साल पहले एसपीक्यूईएम केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने मदरसों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए पेश किया था जिसमें पाठ्यक्रम, गणित, विज्ञान, हिंदी, अंग्रेजी और सामाजिक विज्ञान जैसे विषय शामिल थे। इन विषयों के लिए शिक्षकों को केंद्र सरकार द्वारा प्रदान किए गए धन के माध्यम से भुगतान किया जाता है। वर्तमान में भारत में लगभग 5000 मौलाना हैं जो चार वेदों से अवगत हैं और संस्कृत के मुताबिक बोल सकते हैं। साथ ही उन्होंने कहा मदरसा बोर्ड में एक स्रोत ने दावा किया कि मदरस के पाठ्यक्रम में संस्कृत को शामिल करने के लिए “कठोर आंतरिक प्रतिरोध” मिल सकता है। “मुझे नहीं लगता कि कई मौलवियों ने इस विचार का मनोरंजन किया क्योंकि मदरसे का मुख्य उद्देश्य इस्लामी भाषा का ज्ञान देना है।”
वहीँ हैलो उत्तराखंड न्यूज़ से बात करते हुए उत्तराखंड मदरसा शिक्षा बोर्ड के रजिस्ट्रार अखबाक अहमद अंसारी ने बताया कि मीडिया से ही उनको इस विषय में जानकारी मिली है। साथ ही उन्होंने बताया कि अगर सरकार मदरसों में संस्कृत भाषा को विषय के रूप में लाती है तो हम उसका पूरी तरह से स्वागत करेंगे। अंसारी ने बताया कि फिलहाल मदरसों में एक छात्र तीन भाषाओं को विषय के रूप में ले सकता है जिसमे से हिंदी, इंग्लिश, अरबी और फारसी शामिल है। अंसारी का कहना है कि आने वाली 9 और 10 जनवरी को मदरसा शिक्षा बोर्ड की मीटिंग में इस विषय पर चर्चा की जाएगी।