चमोली: उत्तराखंड को यूं ही देवभूमि नहीं कहा जाता। यहाँ विभिन्न देवों के कई साल पुराने मंदिर आज भी अपने नए स्वरुप में मौजूद हैं। यहाँ के प्रत्येक मंदिर की अपनी एक अलग विशेषता है। ऐसा ही एक मंदिर चमोली जिले में है, जिसकी विशेषता है कि, यहाँ साल में सिर्फ एक दिन ही भगवान की पूजा की जाती है। मान्यता है कि साल के बाकी 364 दिन यहां देवर्षि नारद भगवान की पूजा करते हैं। यह अद्भुद मंदिर चमोली जिले के जोशीमठ विकासखंड की उर्गम घाटी में है। भगवान वंशी नारायण के इस मंदिर के कपाट केवल रक्षाबंधन पर ही खोले जाते हैं और उसी दिन सूर्यास्त से पूर्व बंद भी कर दिए जाते हैं।
अपनी अलग विशेषता रखने वाला वंशीनारायण मंदिर का निर्माण छठी से आठवीं सदी के बीच का माना जाता है। ऐसा भी कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण पांडवकाल में हुआ। इस मंदिर में भगवान विष्णु की पूजा होती है। सदियों से चली आ रही परंपरा के अनुसार यहाँ मनुष्य दर्शन और पूजा-अर्चना केवल रक्षाबंधन को ही कर सकते हैं।
इस मंदिर में मनुष्य को सिर्फ एक दिन पूजा का अधिकार दिए जाने की भी एक रोचक कहानी है। जिसके अनुसार, एक बार भगवान नारायण को राजा बलि के आग्रह पर पाताल लोक में द्वारपाल की जिम्मेदारी संभालनी पड़ी। तब माता लक्ष्मी उन्हें ढूंढते हुए देवर्षि नारद के पास वंशी नारायण मंदिर पहुंचीं और उनसे भगवान नारायण का पता पूछा। नारद ने माता लक्ष्मी को भगवान के पाताल लोक में द्वारपाल बनने का पूरा वृतांत सुनाया और उन्हें मुक्त कराने की युक्ति भी बताई। देवर्षि ने कहा कि आप राजा बलि के हाथों में रक्षासूत्र बांधकर उनसे भगवान को मांग लें लेकिन, पाताल लोक का मार्ग ज्ञात न होने पर माता लक्ष्मी ने नारद से भी साथ चलने को कहा। तब नारद माता लक्ष्मी के साथ पाताल लोक गए और भगवान को मुक्त कराकर ले आए। इसलिए सिर्फ यही दिन था, जब देवर्षि नारद वंशी नारायण मंदिर में पूजा नहीं कर पाए। इस दिन उर्गम घाटी के कलकोठ गांव के जाख पुजारी ने भगवान वंशी नारायण की पूजा की। तब से यह परंपरा अनवरत चली आ रही है।
इस मदिर की एक यह भी विशेषता है कि, यहाँ के पुजारी ठाकुर जाति के होते हैं। प्रकृति की गोद में बसे इस मंदिर की फुलवारी में कई दुर्लभ प्रजाति के फूल भी खिलते हैं, जिन्हें सिर्फ रक्षाबंधन पर्व पर ही तोड़ा जाता है और इनसे भगवान नारायण का श्रृंगार किया जाता है। साथ ही श्रद्धालुओं द्वारा भगवान वंशी नारायण को रक्षासूत्र बांधा जाता है। इस मंदिर के साथ ही यहाँ मूर्ति की भी एक अनोखी विशेषता है कि, इसमें नारायण के साथ शिव के भी दर्शन होते हैं, दस फीट ऊंचे इस मंदिर में भगवान विष्णु की चतुर्भुज पाषाण मूर्ति विराजमान है।