नई दिल्ली: बैंकिंग क्षेत्र में डूबे कर्ज (एनपीए) को लेकर बीजेपी और कांग्रेस के बीच बयानबाजी चल रही है। इसी बीच रिजर्व बैंक पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने कहा है कि कांग्रेस की अगुवाई में चली यूपीए सरकार के समय हुए कोयला घोटाला राजकाज से जुड़ी विभिन्न समस्याएं ही इसकी बड़ी वजह है। उन्होंने यह भी कहा कि इसके बाद आई एनडीए सरकार के समय भी फैसला लेने में देरी भी एक कारण है। लेकिन उनके इस बयान के बाद कांग्रेस के लिये बड़ी मुश्किल हो सकती है क्योंकि जब भी बैंक को एनपीए के बढ़ने की बात आती है तो बीजेपी यूपीए सरकार को दोषी ठहराती रही है वहीं कांग्रेस हमेशा बीजेपी की नीतियों पर निशाना साधती है।
आकलन समिति के चेयरमैन मुरली मनोहर जोशी को दिये नोट में उन्होंने कहा, ‘‘कोयला खदानों के संदिग्ध आबंटन के साथ जांच की आशंका जैसे राजकाज से जुड़ी विभिन्न समस्याओं के कारण संप्रग सरकार तथा उसके बाद राजग सरकारों दोनों में सरकारी निर्णय में देरी हुई।’’ राजन ने कहा कि इससे परियोजना की लागत बढ़ी और वे अटकने लगी. इससे कर्ज की अदायगी में समस्या हुई है। कुछ दिन पहले ही पीएम मोदी ने बैंकिंग क्षेत्र में डूबे कर्ज (एनपीए) की भारी समस्या के लिये पूर्ववर्ती संप्रग सरकार के समय श्फोन पर कर्ज के रुप में हुए घोटाले को जिम्मेदार ठहराया था।
उन्होंने कहा कि ‘नामदारों’ के इशारे पर बांटे गए कर्ज की एक-एक पाई वसूली की जाएगी। उन्होंने कहा कि चार-पांच साल पहले तक बैंकों की अधिकांश पूंजी केवल एक परिवार के करीबी धनी लोगों के लिए आरक्षित रहती थी। आजादी के बाद से 2008 तक कुल 18 लाख करोड़ रुपये के रिण दिए गए थे लेकिन उसके बाद के 6 वर्षों में यह आंकड़ा 52 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच गया। वहीं, पूर्व वित्त मंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पी. चिदंबरम ने पलटवार करते हुये पूछा कि एनडीए सरकार को यह बताना चाहिए कि उनके समय में दिए गए कितने ऋण डूब गए। कांग्रेस नेता ने इस संबंध में कई ट्वीट किए। उन्होंने अपने ट्वीट में कहा, मई 2014 के बाद कितना कर्ज दिया गया और उनमें से कितनी राशि डूब (नॉन पर्फोर्मिंग एसेट्स) गई।
चिदंबरम ने कहा कि यह सवाल संसद में पूछा गया लेकिन अब तक इस पर कोई जवाब नहीं आया है। चिदंबरम ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी जब कहते हैं कि संप्रग सरकार के समय दिए गए कर्ज डूब गए, इस बात को अगर सही मान भी लिया जाए तो उनमें से कितने कर्जों का मौजूदा एनडीए सरकार के कार्यकाल में नवीकरण किया गया और उनमें से कितने को रॉल ओवर (वित्तीय करारनामे की शर्तों पर पुनरू समझौता करना) (मतलब एवरग्रीनिंग) किया गया।’’ पूर्व वित्त मंत्री ने कहा, श्श् उन कर्जों को वापस क्यों नहीं लिया गया? उन कर्जों को एवरग्रीन क्यों किया गया। आपको बता दें कि एवरग्रीन ऋण ऐसा कर्ज होता है जिसमें एक खास अवधि के भीतर मूलधन का भुगतान करने की जरूरत नहीं होती है।