नई दिल्ली: 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस के परेड के मौके पर पहली बार इंडियन नेशनल आर्मी (आईएनए) के चार वेटरन भी राजपथ पर नजर आएंगे। आईएनए को नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने लीड किया था। आजादी के बाद से यह पहला मौका है जब आईएनए के वेटरन परेड में हिस्सा ले रहे हैं।
आईएनए ने देश की आजादी में अहम भूमिका निभाई थी। लेकिन किसी भी सरकार की ओर से परेड में आईएनए को शामिल होने का सम्मान नहीं दिया जा सका था। आईएनए को आजाद हिंद फौज कि नाम से भी जानते हैं।
पिछले वर्ष प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आजाद हिंद फौज की स्थापना के 75 वर्ष पूरे होने के मौके पर लाल किले पर तिरंगा फहराया था। इस दौरान उन्होंने कार्यक्रम में इस सेना की टोपी पहने हुए पीएम मोदी ने कुछ वेटरंस के साथ बातचीत भी की थी।
राजनीति के जानकारों की मानें तो आईएएन को परेड में हिस्सा बनने की मंजूरी देकर बोस की विरासत को आगे बढ़ाया जा रहा है। नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने साल 1939 में कांग्रेस का अध्यक्ष पद छोड़ दिया था। यहां से वह जर्मनी गए थे और यहीं पर आजाद हिंद फौज की स्थापना हुई।
आईएनए की शुरुआत रास बिहारी बोस और मोहन सिंह ने द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान वर्ष 1942 में साउथ ईस्ट एशिया में शुरू किया था। इसका मकसद देश को ब्रिटिश शासन से आजादी दिलाना था। लेकिन इसी वर्ष कुछ मतभेदों के चलते दिसंबर में आईएनए का पतन हो गया। फिर रास बिहारी बोस ने आईएनए का जिम्मा नेताजी सुभाष चंद्र बोस को सौंप दिया। इसके बाद 21 अक्टूबर 1943 को जर्मनी में नेताजी ने आजाद हिंद फौज का ऐलान किया। इसका मतलब था आजाद भारत की आजाद सेना।