देहरादून: उत्तराखंड संस्कृति विभाग। आज तक समझ में नहीं आया कि संस्कृति विभाग काम क्या करता है। पहाड़ की किस संस्कृति को प्रमोट करने का काम कर रहा है…? संस्कृति को बचाने और संरक्षित करने वाला संस्कृति विभाग पहाड़ की समृद्ध सांस्कृतिक धरोहरों को ढूंढ-ढूंढ कर देहरादून में बसा देना चाहता है। आखिर क्यों…ये पहला सवाल है…? इसका जवाब मैं ही संस्कृति विभाग की ओर से दे देता हूं। जवाब है संस्कृति का संरक्षण। क्या आपको भी इसमें संरक्षण नजर आ रहा है कि हम पहाड़ में रची-बसी चीजों को उखाड़कर देहरादून में सजा दें…? क्या इससे समृद्ध संस्कृति का संरक्षण हो पाएगा…?
संस्कृति विभाग देहरादून में एक संस्कृति पार्क बनाना चाहता है। उस पार्क में पहाड़ की विभिन्न सांस्कृतिक धरोहरों को सजाकर रखने का प्लान है। इस पार्क के लिए विभाग इन दिनों पहाड़ में चैकटों की तलाश में है। किसी चैकट को उखाड़कर लाया जाएगा और पार्क में स्थापित कर दिया जाएगा। इसके पीछे संस्कृति विभाग का तर्क कि इससे उनका संरक्षण होगा। सवाल यहीं से शुरू होता है।
पहले सरकार ने होम स्टे योजना को ब्रेक लगा दिया। जब से ये फैसला आया कि लैंड यूज बदलवाना जरूरी है। होम स्टे का सिलसिला थम सा गया है। अब होम स्टे का शोर भी नहीं सुनाई दे रहा है। ठीक उसी तर्ज पर संस्कृति विभाग भी बजट को ठिकाने लगाने की दिशा में आगे बढ़ रहा है। जिन भवनों को देहरादून में रखकर संरक्षण का दावा किया जा रहा है। उनके लिए पिछले करीब पांच सालों से बजट संस्कृति विभाग के खाते में पड़ा हुआ है। आज तक एक ठेला भी पुरातन भवनों के संरक्षण पर खर्च नहीं किया गया। क्यों…?
ग्राम दर्शन और ग्रामीण पर्यटन की बातें खूब होती हैं। दावे भी खूब हो रहे हैं। लेकिन, असल मायने में काम कहीं नजर नहीं आता। भवनों को देहरादून में स्थापित कर पहाड़ में इनको देखने जाने वालों को जरूरत ही नहीं पड़ेगी। देहरादून में आकर सबकुछ जान समझ कर वापस लौट जाएंगे, जो थोड़े-बहुत लोग आते भी हैं, वे भी नहीं आएंगे। लोगों को पलायन तो हुआ ही, सरकार पर्यटकों का भी पलायन कर देना चाहती है। पर्यटन विभाग और संस्कृति विभाग बताए कि ग्राम दर्शन और ग्रामीण पर्यटन के तहत अब तक क्या काम किया है…?