नई दिल्ली: असम और अरुणाचल प्रदेश का 21 साल का लंबा इंतज़ार ख़त्म हो गया। ब्रह्मपुत्र नदी पर डबल डेकर रेल और रोड ब्रिज बनकर तैयार हो गया है, जिसके जरिए दोनों राज्यों के बीच आवागमन आसान हो जाएगा। साथ ही इस पुल से उत्तर पूर्वी सीमा पर तैनात सेना को बड़ी सहूलियत मिलेगी। क्रिसमस के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पुल को देश को सौंपा। इसकी आधारशिला 1997 में पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा ने रखी थी। गुवाहाटी से तकरीबन 442 किलोमीटर दूर ये पुल 4.94 किलोमीटर लंबा है, ये देश का सबसे लंबा रेल-रोड ब्रिज है। इलाके के लोगों के लिए ये पुल एक सपना पूरा होने जैसा है।
Assam: Prime Minister Narendra Modi at 4.94 km long Bogibeel Bridge, a combined rail and road bridge over Brahmaputra river in Dibrugarh. pic.twitter.com/f7p2WCytfs
— ANI (@ANI) December 25, 2018
पुल ब्रह्मपुत्र घाटी के उत्तरी और दक्षिणी सिरों को जोड़ेगा। इसका हमसे अलग-सा नाता है। ब्रह्मपुत्र के दो सिरों को जोड़ना अपने आप में चुनौती का काम था। ये भारी बारिश का इलाका है, ये भूकंप की आशंका वाला इलाका है, ये पुल कई मायनों में अनोखा है। ये देश में सबसे बड़ा है। इस डबल डेकर पुल को भारतीय रेलवे ने बनाया है। इसके नीचे के डेक पर दो रेल लाइन हैं और ऊपर के डेक पर 3 लेन की सड़क है। ये पुल उत्तर में धेमाजी को दक्षिण में डिब्रूगढ़ से जोड़ेगा।
पहले धेमाजी से डिब्रूगढ़ की 500 किलोमीटर की दूरी तय करने में 34 घंटे लगते थे, अब ये सफर महज 100 किलोमीटर का रह जाएगा और 3 घंटे लगेंगे। इस पर 5920 करोड़ की लागत आई है। शुरू में इसकी लागत 1767 करोड़ आने का अनुमान लगाया गया था। इस पुल से फौजी टैंक भी जा सकते हैं। स्थानीय लोगों का कहना है कि मेडिकल इमरजेंसी की हालत में ये पुल बहुत ही मददगार साबित होगा। पहले डिब्रूगढ़ जाने के लिये हम लोग पानी के जहाज़ पर निर्भर करते थे, लेकिन अब हर काम में आसानी हो जाएगी।
2014 के आम चुनावों में बीजेपी का एक बड़ा वादा इस पुल को पूरा करने का भी था. इस पुल को देश का सबसे धीमा प्रोजेक्ट होने की बदनामी झेलनी पड़ी, हो सकता है कि 2019 के चुनावों ने उसकी गति बढ़ा दी हो। अधिकारियों के अनुसार यह पुल एशिया का दूसरा सबसे लंबा पुल है। यह पुल अगले 120 साल तक सेवा दे पाएगा। पुल के उद्घाटन के मौके पर पीएम मोदी ने तिनसुकिया और नहारलागुन इंटरसिटी एक्सप्रेस को भी हरी झंडी दिखाई इस पुल को बनाने में कुल 30 लाख सीमेंट की बोरियां लगी हैं। इस पुल के बनने से भारतीय सेना को भी भारत-चीन सीमा के पास पहुंचने में मदद मिलेगी। पहले सेना को भी नदी के दूसरी तरफ जाने के लिए कई घंटे का रास्ता तय करना पड़ता था।