रूद्रप्रयाग: कभी हजारों जानवरों से गुलजार रहने वाली गुलाबराय की ऐतिहासिक भैंस व बैल मण्डी आज वीरान पड़ी हुई है। रोजगार के अभाव में गांव खाली हो रहे हैं तो ऐसे में पशुपालकों की संख्या भी लगातार घट रही है। जिसका सीधा असर पशुपालन व्यवसाय पर पड़ रहा है और काश्तकारों की आर्थिकी पर इसका सीधा असर पड़ रहा है।
कई दशकों से रुद्रप्रयाग, चमोली, पौड़ी, टिहरी व कुमांयू क्षेत्र के हिस्सों से पशुपालक इस मण्डी में पहुंचते थे और बैलों व भैंसों की खरीददारी करते थे। मगर बदलते परिवेश में मण्डी धीरे-धीरे सिमटती जा रही है और अब यहां चन्द जानवर ही देखने को मिल रहे हैं। स्थानीय लोगों का कहना है कि रोजगार की एक प्रमुख मण्डी अब सिमटती जा रही है। दशकों से चली आ रही इस ऐतिहासिक मण्डी को बचाने के लिए सरकारी स्तर पर कोई प्रयास न होने का ही कारण है कि ग्रामीणों का पशुधन से मोह भंग हो रहा है। मण्डी के सिमटने से स्थानीय रोजगार भी प्रभावित हो रहे हैं। मण्डी के कारण यहां वाहन चालकों, स्थानीय भवन स्वामियों, लाने वाली महिलाओं व स्थानीय दुग्ध व्यवसाय पर सीधा असर पडा है। लोगों ने सरकार से मांग की ही कि इस तरह की मण्डियों को पुर्नजीवित कर रोजगार के अवसरों को बचाये रखने की कार्ययोजना बनाई जाय। प्रदेश सरकार गांवों को बसाने व पलायन को रोकने के लिए ग्राम्य विकास की नीतिया तो कागजों में तय कर रही हैं मगर यहां की स्थितियों के अनुरुप संचालित व्यवशायों के संरक्षण की दिशा में कोई भी ठोस कार्ययोजना तय नहीं कर पा रही है। जिसके चलते आज हजारों काश्तकारों से जुडी गुलाबराय मण्डी सिमटती जा रही है।