रुद्रप्रयाग: प्रदेश सरकार ग्रामीण कृषि की पैदावार बढाने व उन्नत कृषिकरण के लिए भले ही नये प्रयोग कर रही हो और ग्रामीण भी इसे अपना रहे हों, लेकिन पहाड़ी क्षेत्रों के गांवों में आज भी पारंपरिक कृषि जारी है और महिलाओं के कंधों का बोझ कम नहीं हो रहा है।
रुद्रप्रयाग जिले के तल्ला नागपुर क्षेत्र में आपको आज भी पारंपरिक खेती देखने को मिल जायेगी। यहां पर धान की खेती में जमे कूडे व खर-पतवार को निकालने के लिए एक विशेष प्रकार के हल का प्रयोग किया जाता है, जिसे स्थानीय बोली में मय्या कहा जाता है। इसको चलाने के लिए दो लोग अपने शरीर पर रस्सियां बांधकर खींचते हैं और एक व्यक्ति पीछे से इसके जरिये खेतों को जोतते हैं। यह कार्य भले ही काफी मेहनत व थकान भरा होता है लेकिन, ग्रामीणों का मानना है कि इससे समय की बचत होती है और खेत की सफाई हो जाती है। आज कृषिकरण के तमाम नये उपकरण प्रयोग में लाये जा रहे हैं, बावजूद इसके इन ग्रामीणों की इतनी मेहनत के बाद भी फसल को कभी ओलावृटि तबाह कर देती है, तो कभी सूखे व कभी जंगली जानवर खेती को तहस-नहस कर देते हैं।
महिलाओं के उपर काम का बोझ तो अधिक है, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में काश्तकारों को उनकी मेहनत का मेहनताना नहीं मिल पा रहा है। ऐसे में सरकार को चाहिए कि, ग्रामीण कृषि को लेकर अलग से नीतियां बने, जिससे पारंपरिक खेती भी जीवित रहे और ग्रामीणों को फसलों से मुनाफा भी मिल सके।