-कृष्णपाल सिंह रावत
…लगता है उत्तराखंड राज्य बनने के बाद सरकारी बजटों को खर्च कर सरकार विकास के नाम पर प्रचार-प्रसार कर अपनी उपलब्धियों को लेकर जनता को लुभाने की कोशिशों में कोई भी कोर कसर नहीं छोड़ रही है, लेकिन पहाड़ पर जीवन यापन करने वाले लोगों की समस्याओं की स्थिति दिन-प्रतिदिन कम होने का नाम नही ले रही है। एक ओर जहां प्रदेश का स्वास्थ्य महकमा पहाड़ों में दम तोड़ता नजर आ रहा है, वहीं दूसरी ओर पहाड़ों पर जीवनदायिनी 108 खुद ही बीमारी से ग्रसित है, लेकिन पहाड़ो से पलायन रोकने का दम भरने वाले अपने को पहाड़ी बेटा बताने वाले मानवीय न जाने कहाँ गायब हैं। जीवनदायनी 108 बीमार है लेकिन सुध लेने वाला तो दूर, उसकी आवाज उठाने वाला भी कोई नही है। भला उन्हे क्या फर्क पड़ता फर्क तो पहाड़ के उस गरीब पर पड़ता है, जिसके नाम पर विकास का करोड़ों रूपया कहीं स्वास्थ्य के नाम पर तो कहीं शिक्षा के नाम पर, कहीं सड़कों के नाम पर तो कहीं कृषि के नाम पर इस मंशा के साथ खर्च होता है कि, पहाड़ों पर बुनियादी जरूरतों को पूरा कर पलायन रोक सके। लेकिन अब ऐसा प्रतीत होता है कि इन लोगों का पलायन रोकने के पीछे वहां की जनसंख्या के आधार पर सरकारी योजनाओं के बजट को खर्च करना ही रह गया हो। बात बीमार चल रही जीवनदायिनी 108 की करें तो उसकी सुध लेने वाला शायद कोई नहीं, जिससे उसमें तैनात कर्मियों के साथ-साथ मरीजों और उसके तीमारदारों की जिन्दगी के साथ खिलवाड़ हो रहा है।
इस सम्बन्ध में जब कुछ जगहों पर हैलो उत्तराखंड न्यूज़ टीम द्वारा जानकारी ली गई, तो धरातल पर चौंकाने वाले तथ्य सामने आये..
जौनपुर (थत्यूड़): यहां पर तैनात 108 एम्बुलेन्स की स्थिति बहुत ही खराब है। एम्बुलेन्स के आगे की कमानी के दो पट्टे पिछले दो माह से टूटे हैं, जिनको कि एक टुकड़े के सहारे वैल्डिंग कर संचालित किया जा रहा है। जानकारों की माने तो यह जुगाड़ कभी भी मरीज और एम्बुलेन्स सवार लोगों की जिन्दगी खतरे में डाल सकता है। सूत्रों की माने तो अधिकृत सर्विस सेंटर वाले ने भी पिछला भुगतान न होने पर कार्य करने से मना कर दिया।
लम्बगाॅव (प्रतापनगर): यहाँ की बात की जाय तो टिहरी बाॅध से अलग-थलग पड़े इस क्षेत्र के लोगों के लिए 108 एम्बुलेन्स वरदान साबित हुई थी, लेकिन अब बीमार इस एम्बुलेन्स के चलते लोगों को भारी परेशानियों से जूझना पड़ता रहा है। यहां की एम्बुलेन्स के हालत पर नजर डालें तो 10 साल पुरानी ये एम्बुलेन्स कई दिनों से अलायमेन्ट न होने से एक साइड झुकी हुई है। साथ ही पिछले एक साल से बिना सस्कशन मशीन (किसी के शरीर से जहर निकालने सम्बन्धी यंत्र) के एम्बुलेन्स संचालित हो रही है।
थौलधार (कण्डीसौड़): यहाँ की कहानी भी कुछ अलग नहीं है। यहां पर तैनात 108 के हालात भी सही नही हैं। लम्बी दूरी तय करने पर बार-बार ब्रेक न लगने की शिकायत के चलते एम्बुलेन्स दूरस्थ क्षेत्रों में सेवायें नही दे पा रही हैं। ऐसे में कभी भी बड़े हादसे होने से इन्कार नही किया जा सकता। जबकि ऋषिकेश-गंगोत्री हाईवे (कांवड यात्रा मार्ग) पर तैनात इस ऐम्बुलेन्स के कन्धो पर बहुत बड़ी जिम्मेदारी है।
कोटी कलोनी में भी इसकी हालत में कोई खास अंतर नजर नहीं आता। यहां पर तैनात 108 एम्बुलेन्स पर भी बार-बार ब्रेक छोड़ने की शिकायतें आ चुकी हैं। जिसके कारण एक आरटीए केस के दौरान एम्बुलेन्स ही दुर्घटनाग्रस्त हो गई थी, जिसके कारण इसके द्वारा भी लम्बी दूरी तय करने से परहेज रखा है।
नन्दगाॅव पर भी 108 बदहाली के आंसू रो रहा है। यहां पर भी एम्बुलेन्स की जगह खुशियों की सवारी से काम चलाया जा रहा है। जिसके कारण जच्चा-बच्चा घर पर नही छोड़े जा रहें हैं। सबसे गम्भीर बात है कि, उक्त वाहन पर ऑक्सीजन की व्यवस्था ही नहीं हैं। तो ऐसे में क्या लोगों की जिन्दगी के साथ कुछ खिलवाड़ सा नजर नहीं आ रहा!
ये बात तो महज टिहरी जनपद में तैनात महज कुछ जगहों की है। अब प्रश्न यह उठता है कि, जब जीवनदायनी 108 के रूप में बड़ी उपलब्धि गिनाकर वोट मिल सकता है, तो क्या बदहाली को लेकर वोट टूट नही सकता!