देहरादून: प्रदेश में अधिकारियों और मंत्रियों के लिए वाहनों के प्रयोग की बाकायदा नियमावली बनाई गई है। इसके लिए 169 /IX-1/215/2011/2016 में शासनादेश भी निकाला गया था, लेकिन उत्तराखंड में वन विभाग और दूसरे विभागों के अधिकारी नियमावली की धज्जियां उड़ा रहे हैं। स्थिति यह है कि मुख्यमंत्री करीब 15 लाख की कार का प्रयोग कर रहे हैं, जबकि उत्तराखंड के मुख्य वन संरक्षण 20 लाख से भी अधिक कीमत की कार का प्रयोग कर रहे हैं। नियम यह भी है कि एक अधिकारी एक कार का ही प्रयोग करेगा। बावजूद इसके प्रदेश में कई विभागों के सचिव और दूसरे बड़े अधिकारी दो-तीन कारों का प्रयोग करते हैं। जिसका सीधा असर राज्य के खजाने पर पड़ता है।
यहां देखें 2016 में जारी शासनादेश-PDF
उत्तराखंड वन विभाग के मुखिया 20 लाख से महंगी इनोवा कार में घूम कर मुख्यमंत्री और कैबिनेट मंत्रीयों की खुलेआम अवमानना कर रहे हैं। उत्तराखंड शासन के परिवहन विभाग ने 10 मार्च 2016 का मुख्यमंत्री, कैबिनेट मंत्री और राज्य के विशिष्ट और अति विशिष्ट महानुभावों व विभिन्न श्रेणी के अधिकारियों के लिए सरकारी वाहनों की अनुमन्यता के संबंध में आदेश निर्गत किए थे। इसके अनुसार मुख्यमंत्री और कैबिनेट मंत्रियों, मुख्य सचिव, उच्च न्यायालय के न्यायाधीश, पुलिस महानिदेशक और वन विभाग के मुखिया अन्य प्रमुख वन संरक्षक स्तर के अधिकारियों के लिए 15 लाख तक के अधिकतम मुल्य का वाहन अनुमन्य किया गया था, वन विभाग के मुखिया पीसीसीएफ 20 लाख रुपए से महंगी इनोवा लग्जरी कार में घूम कर खुलेआम नियमों की धज्जियां उड़ा रहे हैं।
बताया जा रहा है कि वन विभाग ने उत्तराखंड जायका परियोजना के अंतर्गत शासनादेश का उल्लंघन करते हुए मानकों के विपरीत लग्जरी कारें खरीदी गई हैं। इधर, सरकार भी इस तरह के मामलों को लेकर चुप्पी साधे हुई है। जबकि वित्तीय मितव्ययता की बातें कर रही है। राज्स की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होने की बातें आए दिन की जाती हैं, लेकिन महंगी लग्जरी कारों की खरीद और प्रयोग पर कोई पाबंदी नहीं लगाई जा रही है। इससे सरकार पर भी सवाल खड़े होते हैं। देखना यह होगा कि सरकार इस मामले में क्या कार्रवाई करती है।
हैलो उत्तराखंड न्यूज से बात करते हुए चीसीसीएफ जय राज ने बताया कि उन्होंने जब कार्यभार लिया था, उनको यही गाड़ी दी गई थी। उनके कार्यकाल में कोई महंगी गाड़ी नहीं खरीदी गई। साथ ही उन्होंने कहा कि जंगल में इस तरह की गाड़ियों की जरूरत पड़ती है।