देहरादून: हाईकोर्ट के आदेश के बाद देहरादून समेत प्रदेश के लगभगभ सभी निकायों में अतिक्रमण पर डंडा चला। देहरादून के बात करें तो एमडीडीए और प्रशासन ने मनमानी कर कई लोगों का अतिक्रमण नहीं होने के बावजूद निर्माण ध्वस्त कर दिया था। अब शासन ने क्नीलिक, नर्सिंग होम, चाइल्ड केयर, नर्सरी स्कूल, प्ले ग्रुप स्कूलों के लिए वन टाइम सेटलमेंट स्कीम शुरू की है। इसको लेकर सवाल उठने शुरू हो गए हैं।
दरअसल, निर्संग होम और प्ले स्कूल मानकों के खिलाफ बने हुए हैं। कई जगहों पर सरकारी जमीनों में भी कब्जे किए गए हैं। प्ले स्कूलों और नर्सिंग होमों की बात करें तो ज्यादातर नर्सिंग होम और क्लीनक स्वास्थ्य सेवाओं के नाम पर लोगों को लूटने का काम कर रहे हैं। इन नर्सिंग होमों और क्लीनिकों में डाॅक्टरों की फीस न्यूनतम 500 रुपये है। दवाइयों के नाम पर इनमें सबसे महंगी दवाएं बेची जाती हैं। प्ले स्कूल लोगों से मोटी फीस वसूलते हैं। फिर इनको किस बात की छूट दी जा रही है। दूसरा सवाल यह है कि क्या सरकार ने इस तरह से हाईकोर्ट की अवमानना नहीं की है।
लोगों को सवाल ये भी है कि अगर सरकार को वन टाइम सेटलमेंट स्कीम लानी ही थी, तो फिर उनको क्यों नहीं मौका दिया गया। दूसरा ये कि जिस तरह की शर्तें क्लीनिक, नर्सिंग होम होम और प्ले स्कूलों के लिए रखी गई हैं। उन्हीं शर्तों पर आम लोगों को क्यों राहत नहीं दी जा रही। एमडीडीए में इस तरह के कई केस पहले से ही पेंडिंग चल रहे हैं। कई लोगों ने खुद ही एमडीडीए से वन टाइम सेटलमेंट का आवेदन किया है। बावजूद इसके उनको राहत देने के बजाय एमडीडीए लोगों के घर तोड़ने पर आमादा है। सवाल ये भी है कि आखिर यह दोहरे मानदंड क्यों ?
इस पूरे मामले को लेकर हैलो उत्तराखंड न्यूज ने सितंबर 2018 में ही खबर प्रकाशित की थी कि सरकार कुछ इस तरह की स्कीम ला सकती है। जिसके लिए बड़े स्तर पर सेटलमेंट भी किया गया। आखिरकार सरकार ने नर्सिंग होम, क्लीनिक, नर्सरी और प्ले स्कूलों के मालिकों की बात को मान ही लिया। वन टाइम सेटलमेंट को लेकर बाकायदा इंडियन मेडिकल एसोसिएशन और स्कूल एसोसिएशन के प्रतिनिधिमंडल की कई दौर की बैठकें शासन और एमडीडीए से कराई गई थी।