देहरादून: प्रदेश के पांच आयुर्वेदिक कॉलेजों को सेंट्रल काउंसिल ऑफ इंडियन मेडिसिन (सीसीआईएम) ने मान्यता नहीं दी है। सीसीआईएम ने इसकी सूची भी जारी कर दी है। वहीँ इन कॉलेजों को मान्यता न मिलने से प्रदेश को 300 बीएएमएस सीटों का नुकसान होगा।
इस साल सीसीआईएम से मान्यता नहीं मिलने वाले कॉलेजों में कुछ राजनीतिक लोगों के परिवारों से जुड़े कॉलेज शामिल हैं।
बता दें, प्रदेश में बीएएमएस, बीएचएमएस व बीयूएमएस के दाखिले के लिए दूसरे राउंड की काउंसिलिंग चल रही है। इसमें सरकारी व गैर सरकारी 16 आयुर्वेदिक कॉलेज हैं। साथ ही दो होम्योपैथिक व एक यूनानी कॉलेज शामिल हैं। आयुर्वेद विवि द्वारा जारी अधिसूचना में कहा गया था कि बीएएमएस, बीएचएमएस व बीयूएमएस की कुल 1240 सीटों पर दाखिले किए जाएंगे। जिनमें स्टेट कोटा की 675 व ऑल इंडिया की 565 सीटें हैं, लेकिन प्रथम राउंड तक केवल सात ही कॉलेज की मान्यता पर स्थिति स्पष्ट हुई।
अब आयुष मंत्रालय ने उन कॉलेजों की सूची अपलोड की है जिनके इस सत्र में आवेदन खारिज हुए हैं। इनमें बीएएमएस की 60-60 सीटें हैं। जिनमें स्टेट कोटा व ऑल इंडिया कोटा की 30-30 सीट हैं।
जिन कॉलेजों को मान्यता नहीं मिली, उनमे बिहाईव आयुर्वेदिक मेडिकल कॉलेज, सेंट्रल होपटाउन, देहरादून, क्वाड्रा इंस्टीट्यूट ऑफ आयुर्वेद, रुड़की, हिमालयीय आयुर्वेदिक मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल, श्यामपुर, श्रीमति पूर्णादेवी मेमोरियल ट्रस्ट दून इंस्टीट्यूट ऑफ आयुर्वेद, सहसपुर, बिशंबर सहाय आयुर्वेदिक कॉलेज, रुड़की शामिल है। सीसीआईएम द्वारा देश भर में कुल 80 कॉलेजों को इस साल मान्यता नहीं मिली है।
वहीँ इन कॉलेज प्रशासन का कहना है कि, एक्ट के अनुसार कमियों को दूर करने के लिए 150 दिन का समय दिया जाना चाहिए था, लेकिन यह पूरा समय उन्हें नहीं दिया गया।
मामले में आयुष मंत्री डॉ. हरक सिंह का कहना है कि, टीम द्वारा निरीक्षण करने के बाद देशभर में 200 से अधिक कॉलेजों को मान्यता नहीं दी है। साथ ही उन्होंने कहा कि, कई पुराने कॉलेजों को भी मान्यता नहीं दी गई, जिन्होंने काफी मेहनत इन कॉलेजों पर की। इसके अलावा उन्होंने कहा कि, वे मामले में अब न्यायालय का रुख कर रहे हैं।
वहीं हैलो उत्तराखंड न्यूज़ को जानकारी देते हुए सीसीआईएम के अध्यक्ष डॉ. जयंत देव पुजारी ने बताया कि इन कॉलेजों का औचक निरीक्षण किया गया था लेकिन उन्होंने न ही बुनियादी आवश्यकताओं को पूरी करने की कोशिश की और न ही समय रहते इन ज़रूरतों को पूरा किया, जिस कारण आयुष मंत्रालय ने यूजी और पीजी कोर्सेज की मान्यता नहींं दी, जबकि कॉलेजों को पूरा समय दिया गया था।