नैनीताल: नैनीताल हाईकोर्ट ने प्रदेश के सभी निर्माणाधीन हाइड्रो प्रोजेक्ट पर रोक लगा दी है। कोर्ट ने मलबे के निस्तारण के लिए डंपिंग जोन बनाने के निर्देश देते हुए प्रदेश के सभी जिलाधिकारियों से सुनिश्चित करने को कहा है कि, मलबे का निस्तारण नदियों से 500 मीटर से दूर किया जाय। कोर्ट ने कहा कि, इसका उल्लंघन होने पर उन्हें व्यक्तिगत रूप से दोषी माना जायेगा। कोर्ट ने यह भी सुनिश्चित करने को कहा कि, नदियों के अधिकतम का कम-से-कम 50 फीसदी प्रवाह वर्षभर बना रहे। वरिष्ठ न्यायाधीश राजीव शर्मा और न्यायमूर्ति लोकपाल सिंह के समक्ष मामले की सुनवाई हुई।
रुद्रप्रयाग के हिमाद्रि जन कल्याण संस्थान ने जनहित याचिका दायर कर प्रदेश की नदियों में हो रहे अवैध मलवा निस्तारण के कारण पर्यावरण को पहुंच रहे नुकसान को रोके जाने की मांग की थी। याचिका में कहा गया था कि प्रदेश में जल विद्युत परियोजनाओं का निर्माण कर रही कंपनियां अलकनंदा हाइड्रो पावर कंपनी, एल. एंड टी. उत्तरांचल हाइड्रो पावर और लैंको हाइड्रो एनर्जीज निर्माण से निकल रहे मलबे को अलकनंदा और मंदाकिनी नदियों के किनारों पर डाल रहे हैं, जो नदियों के साथ बह कर भारी नुकसान और पर्यावरणीय असंतुलन कर रहा है। साथ ही जिससे पूर्व में जन-धन की हानि हो चुकी है और भविष्य में भी त्रासदी की संभावना है। याचिका में कहा गया कि, इन कंपनियों को निर्माण से पूर्व शर्तों पर डंपिंग जोन आवंटित किये गए थे, लेकिन स्थानीय प्रशासन से सांठ-गांठ कर ये मलबे को इनके बजाय नदियों व राष्ट्रीय राजमार्ग 58 के किनारे फेंक रही हैं। जहां अब तक करोड़ों टन मलबा निस्तारित किया जा चुका है।
याचिका में कहा गया कि अनेक डंपिंग जोन 2013 की आपदा में बह गए थे और कंपनियों ने दूसरे जोन निर्धारित नहीं किये। अधिवक्ता कार्तिकेय हरि गुप्ता ने कोर्ट में कहा कि भारत सरकार के वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने 2013 की आपदा की जांच रिपोर्ट में माना है, कि इस दौरान नदियों में भारी उफान और उनका रास्ता बदल जाने का मुख्य कारण इनके किनारों पर मलबे का अनुचित निस्तारण था तथा नदियों के अचानक रास्ता बदल लेने से भारी जनहानि और संपत्ति का नुकसान हुआ था।
याचिका में इन निर्माणों को प्रतिबंधित करने, डंपिंग जॉन निर्धारित करने और पूर्व में हुई जनधन की हानि का मुआवजा दिलवाने की मांग की गई थी।