देहरादून: प्रदेश में निकाय चुनावों का रण अपने चरम पर पहुंच गया है। निकाय के रण में जहां मुख्य मुकाबला भाजपा-कांग्रेस के बीच माना जा रहा है। वहीं, भाजपा-कांग्रेस के भीतर भी कई तरह के मुकाबले नजर आ रहे हैं। कुछ नेता बागी होकर चुनाव लड़ने के लिए नामांकन करा ताल ठोक चुके हैं, तो कुछ दूसरे दलों में शामिल हो गए हैं। कुछ ऐसे भी हैं, जिन्होंने चुनाव से दूरी बना ली है। राजनीतिक दलों के लिए तीनों को ही खतरनाक माना जा रहा हैं।
प्रदेश में सबसे बड़ी हाॅट सीट हल्द्वानी मानी जा रही है। देहरादून में सीधी टक्कर कांग्रेस के पूर्व मंत्री दिनेश अग्रवाल और भाजपा के सुनील उनियाल गामा के बीच है। यहां दोनों दलों में उथल-पुथल कम नजर आ रही है, लेकिन ऋषिकेश, हरिद्वार और हल्द्वानी में राजनीति अपने चरम पर है। हल्द्वानी की बात करें तो नेता प्रतिपक्ष इंदिरा हृदयेश के बेटेे सुमित हृदयेश और भाजपा के निवर्तमान मेयर डाॅ.जोगेंद्र पाल रौतेला के बीच है। भाजपा में भले ही खुलकर कलह बाहर नहीं आई, लेकिन भीतर ही भीतर डाॅ.रौतेला के लिए जाल बुने जा सकते हैं। कुछ ऐसे चेहरे हैं, जो भाजपा में पिछले चुनावों में इसी शर्त पर शामिल हुए थे कि उनको आगे मौका दिया जाएगा, लेकिन हुआ उसके उलट।
कांग्रेस के ललित जोशी को हालांकि यह मानकर चला जा रहा है कि उनको मना लिया गया है। उन्होंने नामांकल भी दाखिल नहीं किया। लेकिन, अभी उनकी मुश्किलें कम होती नजर नहीं आ रही हैं। कुछ और कांग्रेसी नेता हैं, जो नाराज चल रहे हैं और भीतरघात कर सकते हैं। कांग्रेस के लिए यह समस्या हमेशा से रही है। अब देखना यह होगा कि कांग्रेस कैसे इस भवंर से बाहर निकलती है।
कांग्रेस और भाजपा के लिए एक परेशानी शोएब अहमद भी हैं। शोएब अहमद अपनी ताकत पहले भी दिखा चुके हैं। दूसरी परेशानी मुस्लिम नेता मतीन हैं। मतीन अहमद सिद्दिीकी इंदिरा हृदयेश के करीबी माने जाते हैं, वो भी बागी तेवर दिखा चुके हैं। कांग्रेस का वोटबैंक बनभूलपुरा माना जाता है, लेकिन वहां पर शाऐब ने लगातार अपनी मजबूत पकड़ बनाई है। कांग्रेस के वोट यहां कटने तय माने जा रहे हैं। कांग्रेस के लिए सबसे बड़ी परेशानी यहीं से खड़ी हो सकती है। देखना यह होगा कि कांग्रेस रूठों को मनाने में कितनी कामयाब रहती है।