देहरादून: कोटद्वार के वरिष्ठ पत्रकार देवेंद्र रावत का निधन हो गया है। उनका जाना पत्रकारिता के लिए बड़ा नुकसान है। राज्य आंदोलन से लेकर पत्रकारिता के अपने पूरी जीवन में उन्होंने हमेशा जनमुद्दों की पत्रकारिता की। लोग उनके पास अपनी समस्याएं लेकर आते थे और देबू भाई उनके साथ चल पड़ते थे। उनका जोश और जुनून, उनको युवाओं से भी इक्कीस साबित करता था।
देवेंद्र रावत जिनको हम देबू भाई के नाम से बुलाते थे। उनके सामने तो नहीं, लेकिन पीठ-पीछे जब भी वो इधर-उधर होते हम उनको देबू भाई कहकर ही बुलाते थे। उनकी समझ उत्तराखंड के जनमुद्दों को लेकर काफी गहरी थी। पहाड़ की समस्याओं को लेकर वे हमेशा मुखर रहे। पत्रकारिता के दौरान जब भी किसी पत्रकार पर संकट आता। देबू भाई हर समय साथ खड़े नजर आतेे। कई मर्तबा वे आंदोलन पर भी उतर आते थे। अपनी बात को बहुत ही बेबाकी से रखते थे। अक्सर नेता उनसे थोड़ा कतराते थे। उनके सवाल काफी तीखे और कड़वे होते थे। इसको लेकर कई बार उनका झगड़ा तक हो जाता था, लेकिन वो किसी बात को मन में नहीं रखते थे।
मेरी उनसे कई बार उत्तराखंड और दूसरे मसलों को लेकर बहस होती रहती थी। कई मामलों में मैं उनके साथ हो लेता था। राजगौरव (गौरी), नवीन, विजयपाल रावत और जितने भी लोग कार्यालय में आते थे सभी से वो कुछ ना कुछ चर्चा कर रहते थे। पढ़ने का उनको खूब शौक रहा। राजनीतिक मसलों की पत्रिकाएं और इतिहास से जुड़ी किताबें पढ़ना उनको हमेशा अच्छा लगता था। काफी समय से उनसे बात भी नहीं हो पाई थी। अब कभी हो भी नहीं पाएगी। देबू भाई आपकी कमी हमें हमेशा खलती रहेगी। आप जितने कड़क थे। उतने ही प्यार करने वाले भी थी। आपने कई पत्रकार तैयार किए। खुद को पीछे धकेल कर हमेशा युवाओं को आगे बढ़ाने का काम किया। पत्रकारों की समस्याओं के लिए राष्ट्रीय स्तर पर पत्रकारों के संगठनों में शामिल रहे और आवाज बुलंद की।