मसूरी: शहीद राज्य आंदोलनकारियों को श्रद्धांजलि देने के लिए पूरे प्रदेश भर से बड़ी संख्या में आंदोलनकारी और जनप्रतिनिधि मसूरी पहुंचे। इस दौरान सभी राजनैतिक और सामाजिक लोगों ने कहा कि जिन मुद्दों को लेकर इस राज्य की मांग की गई थी वे आज भी अधूरे हैं। राज्य आदोलनकारी रविन्द्र जुगरान ने कहा कि उत्तरप्रदेश के जमाने में पहाङ के हालात आज की तुलना में काफी ठीक थे। उन्होंने कहा कि इन 18 सालों में प्रदेश में पहाड़ों में स्वास्थ्य सुविधाएं आज भी बदतर हैं। हालांकि सरकार ने पहाड़ों में अस्पताल तो खुलवा दिए लेकिन आज भी उन सभी अस्पतालों में डॉक्टरों की कमी हैं। जिस कारण पहाड़ों के मरीजों को ईलाज के लिए दर-दर भटकने को मजबूर होना पड़ता है। इसके अलावा पहाड़ों में स्कूली छात्र-छात्राओं को भी शिक्षकों की कमी के चलते पढ़ाई में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। वहीं कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष किशोर उपाध्याय ने कहा कि शहीदों के सपनों के अनुसार राज्य का विकास नहीं हो पाया है। इसके अलावा भाजपा विधायक खजानदास ने कहा कि शहीदों के सपनों का राज्य बनाने में अभी भी हम खरे नहीं उतर पाये है।
उत्तराखंड राज्य आंदोलन के दौरान दो सितंबर 1994 को मसूरी के झूलाघर में हुए गोलीकांड को याद कर आज भी मसूरीवासियों के तन में सिरहन दौड़ जाती है। मसूरी की शांत वादियों के इतिहास में दो सितंबर एक ऐसे काले दिन के रूप में दर्ज है, जिसे कभी भुलाया नहीं जा सकता। यह वही दिन है, जब तत्कालीन उत्तर प्रदेश सरकार की पुलिस ने बिना चेतावनी के अकारण ही राज्य आंदोलनकारियों पर गोलियों की बौछार कर दी थी। इस गोलीकांड में मसूरी के छह आंदोलनकारी शहीद हुए थे साथ ही एक पुलिस अधिकारी की भी गोली लगने से मौत हो गई थी।