नई दिल्ली: केंद्र सरकार माइक्रो यूनिट्स डेवेल्पमेंट एंड रिफाइनरी एजेंसी (मुद्रा योजना) के तहत आंकड़ों को जारी नहीं कर रही है। लेबर ब्यूरों के सर्वे के मुताबिक ये आंकड़े जुटाए गए हैं कि इस स्कीम से कितने लोगों को रोजगार मिला और इससे कितनी नई नौकरियां पैदा हुईं। सरकार ने इन आंकड़ों को सार्वजनिक करने की तारीख दो महीने बाद की तय की है यानी ये आंकड़े चुनाव के बाद ही जारी होंगे।
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, विशेषज्ञ समिति को रिपोर्ट में कुछ कमियां और अनियमितताएं मिलीं। जिसके बाद इस रिपोर्ट को सार्वजनिक ना करने का फैसला लिया गया। पिछले शुक्रवार को हुई बैठक में विशेषज्ञ समिति ने लेबर ब्यूरो की रिपोर्ट में गड़बड़ियों को दुरुस्त करने के लिए कहा। इसके लिए ब्यूरो ने दो महीने का वक्त मांगा है। समिति के इस फैसले को अभी केंद्रीय श्रम मंत्री की मंजूरी नहीं मिली है।
बता दें कि, केंद्र की मोदी सरकार इससे पहले भी नौकरियों और रोजगार के आंकड़ों से जुड़ी रिपोर्ट को लेकर पहले भी इसी तरह का रुख दिखाती रही है। इससे पहले भी बेरोजगारी से जुड़े आंकड़ों को दबाने का आरोप सरकरा पर लगा था। इस बार मुद्रा योजना के तहत नौकरियों और रोजगार के आंकड़ों को सार्वजनिक करने को दो महीने के लिए टाला गया है। मोदी सरकार ने एनएसएसओ की रिपोर्ट को खारिज करने के बाद लेबर ब्यूरो के सर्वे के निष्कर्षों को इस्तेमाल करने की योजना बनाई थी। इस रिपोर्ट में मोदी सरकार के दौरान देश में बेरोजगारी में भारी बढोतरी की बात सामने आई थी।