रुद्रप्रयाग: प्रदेश के सभी मंदिरों में सबसे अधिक उंचाई पर स्थित प्रसिद्ध शिव धाम व तीसरे केदार के रुप में विख्यात भगवान तुंगनाथ के पैदल मार्ग पर आज भी नागरिक सुविधाएं नहीं जुट पायी हैं। करीब साढ़े तीन किमी के अति दुर्गम व चढाई भरे रास्ते पर ना तो कहीं पीने के लिए पेयजल की व्यवस्था है और ना ही कहीं शौचालय व स्ट्रीट लाइटें। यही नहीं रैन शैलटरों के अभाव में तीर्थ यात्रियों को भारी बारिश में भी पैदल यात्रा के लिए मजबूर होना पडता है।
केदारनाथ वन्य जीव प्रभाग के अंतर्गत मिनी स्टिजरलैण्ड के रुप में विख्यात चोपता से साढे तीन किमी की दुर्गम चढाई पर भगवान का यह धाम मौजूद है। यहां पर भगवान शिव के बाहु भाग की पूजा होती है और इन्हें तुंगनाथ के रुप में तृतीय केदार के रुप में पूजा जाता है। स्थानीय विधायक स्वीकार तो करते हैं कि, यहां पर नागरिक सुविधाएं नहीं हैं और स्थानीय प्रशासन भी इन चीजों को मानता है, लेकिन आस्था की इस महायात्रा में तीर्थयात्रियों को सुविधाएं दिलाने के नाम पर हर कोई चुप ही है। यह धाम शैलानियों व ट्रैकरों के लिए आकर्षण का मुख्य केन्द्र भी है। शीतकाल में यहां शैलानी चन्द्रशिला व उच्च क्षेत्रों में ट्रैकिंग, बर्फवारी, बुग्याल व बर्ड वॉचिंग के लिए बडी तादाद में आते हैं।
जिला प्रशासन हो या फिर प्रदेश की सरकारें, हर किसी का ध्यान महज केदारनाथ पर ही टिका रहता है। जबकि, जिले में तुंगनाथ व मदमहेश्वर भी प्रसिद्ध धाम हैं, जिनकी मान्यता पंच केदारों में है। ऐसे में इन धामों की सुध कौन लेगा और यहां आने वाले तीर्थ यात्रियों को सुविधाएं कैसे मिल पायेंगी। यह सवाल आज भी अनसुलझा है, कि आखिर धर्म व पर्यटन की बातें करने वाली सरकारें क्यों इन मठ-मन्दिरों में भी भेदभाव कर रही हैं।