मसूरी: जौनसार-बावर में हर साल जनवरी के शुरूआत में मनाए जाने वाले माघ मरोज पर्व का आगाज हो गया है। इस मौके पर क्षेत्रिय लोगों ने अपनी पारम्परिक रीती-रिवाजों के साथ सुबह से ही बकरे काटने का सिलसिला शुरू किया। हर परिवार ने अपनी पौराणिक मान्यताओं के अनुसार पूजा अर्चना के साथ बकरों को काटा।
वहीं ग्रामीणों का कहना है कि, मरोज का त्यौहार जौनपुर जौनसार क्षेत्र में सदियों से मनाया जाता रहा है। इस त्यौहार का मुख्य अभिप्राय यह है कि, माघ के महीने में सभी ग्रामीण अपने मवेशियों के साथ गाँव में रहते हैं, क्योकि जाड़े का समय होने के कारण ऊंचाई वाले क्षेत्रों में बर्फ पड जाती है। जिस कारण पूरे माघ के महीने सभी लोग एक साथ मिलकर एक महीने तक इस त्यौहार को मनाते आ रहे हैं।
वहीँ माघ के महीने में गाँव में खेतीवाडी का काम भी नही होता है। जिस कारण पूरे एक माह तक आज भी लोग अपनी पौराणिक प्रथा को कायम रखे हुए है और आज भी मरोज का त्यौहार बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है।
मरोज मनाने का धार्मिक महत्व
धार्मिक परंपरानुसार जनजाति क्षेत्र जौनसार-बावर में वर्षो पहले किरमिर राक्षस का आंतक था। उसका वास तमसा नदी में था। उसे रोज नरबलि देनी होती थी। तब मैंद्रथ निवासी हुणाभाट नामक ब्राह्मण ने तपस्या कर महासू देवता को कुल्लू-काश्मीर से हनोल लाए। महासू के आदेश पर उनके पराक्रमी वीर सेनापति कयलू महाराज ने किरमिर राक्षस का वध किया। राक्षस का वध होने की खबर लगते ही समूचे क्षेत्र में महीने भर तक जश्न मना। राक्षस का वध होने की खुशी में क्षेत्रवासी हर साल जनवरी में मरोज पर्व मनाते हैं। परपंरानुसार मरोज मनाने से पहले क्षेत्रीय लोग कयलू मंदिर हनोल के पास हर साल चुराच का पहला बकरा काटकर उसके मांस का आधा भाग राक्षस के हिस्से का आज भी तमसा नदी में फेंकते हैं।