नैनीताल: उत्तराखण्ड उच्च न्यायालय ने मानसिक रूप से अस्वस्थ लोगों से सम्बंधित एक याचिका में राज्य सरकार के लिए कड़े निर्देश जारी किए हैं। न्यायालय ने याचिकाकर्ता विजय वर्मा की जनहित याचिका को सुनने के बाद मानसिक रूप से अस्वस्थ बच्चों की 24 घंटे में बेड़ियां हटाते हुए इन्हें इलाज के लिए 50 हजार रुपये और खाना खर्चा के लिए 5,500 रूपये प्रति माह देने को कहा है। शुक्रवार को अपना निर्णय सुनते हुए न्यायालय ने कहा कि, इन बच्चों को कभी-कभी खाना, दवाई और देख-रेख भी नहीं मिल पाती। उन्हें मौलिक अधिकारों से भी वंचित रखा जाता है। सरकारी महकमे इन बच्चों, खासकर किशोरियों की सुरक्षा में नाकाम हो गया है। इन मानसिक रोगी बच्चों के साथ दुष्कर्म भी किया जाता है। ये बच्चे अपने साथ हुए अपराध की शिकायत भी नहीं कर पाते हैं।
अपने आदेश में न्यायालय ने याचिका में 25 जनवरी 2018 के एक निर्देश का जिक्र किया, जिसमें सरकार से प्रदेशभर में ऐसे बच्चों का आंकड़ा जमा करने को कहा गया है। न्यायालय ने सरकार से उन बच्चों की संख्या और इलाज में लगे चिकित्सकों की संख्या भी बताने को कहा था, जिनका इलाज चल रहा है। न्यायालय ने उन बच्चों की संख्या भी पूछी थी, जिनका इलाज नहीं हो रहा है और जिनके परिजनों ने उन्हें चेन में बांधकर रखा गया है। सड़क में मिलने वाले ऐसे बच्चों को भी अस्पताल भेजने के लिए उच्च न्यायालय ने सरकार से कहा था।
वरिष्ठ न्यायाधीश राजीव शर्मा और न्यायमूर्ति शरद कुमार शर्मा की खण्डपीठ ने याचिका को निस्तारित करते हुए उधम सिंह नगर के जिलाधिकारी और एसएसपी को निर्देशित किया है कि, वो रुद्रपुर निवासी चांदनी को छह घंटे के भीतर बेड़ियों से आजाद कराएं। इसी प्रकार रुद्रप्रयाग के जिलाधिकारी और एसपी को भी निर्देशित किया गया, कि पंकज राणा की बेड़ियां भी छह घण्टे में हटाएं। न्यायालय ने दोनों जिलाधिकारियों को कहा है कि, इन बच्चों को 24 घंटे में अस्पताल में भर्ती कराने के साथ अपने बजट से इनके परिजनों को पचास हजार रुपए 24 घंटे के भीतर इलाज के लिए दिया जाए।
न्यायालय ने सरकार से इन दोनों मानसिक अस्वस्थ लोगों को ₹5500 खर्चा भत्ता के रूप में देने को कहा है। न्यायालय ने सरकार से ऐसे लोगों के लिए पुनर्वास नीति बनाने को भी कहा है। न्यायालय ने प्रदेश के एसएसपी और एसपी को निर्देशित करते हुए कहा कि, प्रदेश में ऐसे मरीजों का तांत्रिक या झोलाछाप डॉक्टर इलाज ना करें और इनके साथ दुर्व्यवहार या इन्हें चेन में भी किसी घर या अन्य जगह नहीं रखा जाए। न्यायालय ने राज्य सरकार को सुझाया है कि, वो ऐसे लोगों के लिए मानवाधिकार केंद्र खोलें।
राज्य सरकार को मेन्टल हैल्थ केअर एक्ट 2017 के सेक्शन 45 के तहत स्टेट अथॉरिटी का गठन करते हुए मेन्टल हैल्थ रिव्यू बोर्ड पांच माह में बनाने को कहा है। पुलिस विभाग को भी हिदायत दी गई है कि, किसी ऐसे इंसान के साथ अभद्रता की सूचना जिलाधिकारी को भी दें। राज्य सरकार से हर जिले में छह माह के भीतर डिस्ट्रिक्ट अर्ली इंटरवेंशन सेंटर खोलने को कहा गया है।
अंत में अपने 56 पेज के आर्डर में याचिका को निस्तारित करते हुए न्यायालय ने कहा है कि, अब कोई भी मानसिक अस्वस्थ रोगी सड़क में भटकते हुए ना दिखे। उन्होंने पुलिस अधिकारियों से कहा है कि, ऐसे मरीजों को तत्काल निकटवर्ती मेन्टल अस्पताल में भर्ती कराया जाए।