देहरादूनः अशासकीय स्कूलों में प्रबंधन समिति के उपर ही पूरे स्कूल की जिम्मेदारी होती है कि कैसे स्कूल को चलाया जाना है। लेकिन जब प्रबंधन समिति पर ही सवाल खड़े हों तो समझा जा सकता है कि जिस स्कूल का प्रबंधन तंत्र ही कमजोर हो उसमें पढ़ने वाले छात्रों का भविष्य किस ओर जा सकता है, क्योंकि प्रबंधन समिति को लेकर जो राजनीति स्कूल में चली जाती है उससे कहीं न कहीं छात्रों के भविष्य पर असर पड़ता है।
मामला पौड़ी जिले के जनता इंटर कॉलेज देखराजखाल, की प्रबंधन समिति का है जो इन दिनों सवालों के घेरे में है और खासा चर्चा में बना है कि कैसे गलत तरीके से इसका गठन किया गया।
हैलो उत्तराखंड न्यूज से बात करते हुए प्रदीप सिंह रावत अध्यक्ष पीटीए (जनता इंटर कॉलेज) ने बताया कि प्रंबध समिति का अनुमोदन गलत तरीके से किया गया है वो भी चुनाव प्रक्रिया के विपरीत जाकर। उनका कहना है कि सीओ ने तमाम विरोध के बावजूद अधिकार होते हुए भी समिति को भंग नहीं किया और मामले में न्यायालय से स्टे होने के बाद भी समिति कार्यकारिणी को अनुमोदन दे दिया जिससे साफ जाहिर है कि सीओ ने नए समिति सदस्यों के साथ मिलकर भ्रष्टाचार को बढ़ावा दे रहे हैं।
गौरतलब है कि जनता इंटर कॉलेज देवराजखाल में प्रबंध कार्यकारिणी के चुनाव करवाए गए। विद्यालय के नियमानुसार कार्यकारणी समिति के चुनाव में वोट देने का अधिकार केवल उसी सदस्य को है जो कम से कम 6 माह पूर्व अपना सदस्यता शुल्क संस्था कार्य में जमा करवा चुका हो। इसके बाद जमा किए गए सदस्यता शुल्क वाले व्यक्ति को मतदान का अधिकार नहीं होंगा।
बता दें कि प्रबंध समिति का कार्यकाल 24 जुलाई को समाप्त होना था। जिसमें 6 माह पूर्व ही चुनाव होने थे लेकिन चुनाव 2 माह बाद करवाए गए, जिसमें मुख्य शिक्षा अधिकारी मदन रावत ने उन नए सदस्यों की भर्ती कर दी जिनका सदस्यता शुल्क कार्यकाल समाप्ति के दौरान जमा किया गया, जो नियम के विरूद्ध है। जिसके बाद अन्यों के विरोध करने के बाद मामला न्यायालय में जा पहुंचा, जिसपर स्टे लगा दिया गया था। लेकिन मुख्य शिक्षा अधिकारी, पौड़ी ने मामले में समिति में नए सदस्यों की नियुक्तियां कर डाली।
हैरत की बात तो यह है कि हैलो उत्तराखंड न्यूज ने जब इस बाबत मुख्य शिक्षा अधिकारी से मामले में सवाल पूछा कि डीएम, एडी की रिपोर्ट में अनियमित्ताओं की पुष्टि हुई है तो इसपर मुख्य शिक्षा अधिकारी ने कुछ भी बोलने से इंकार कर दिया जिससे मुख्य शिक्षा अधिकारी की भूमिका भी सवालों के घेरे में है कि कहीं नई कार्यकारिणी का गठन और उसमें शामिल सदस्यों के साथ सीओ की कोई मिलीभगत तो नहीं है?