प्रदीप रावत
देहरादून : भाजपा सरकार का एक साल का कार्यकाल पूरा होने जा रहा है। अब तक सरकार नेताओं को दायित्यधारी बनाने के लिए लॉलीपॉप ही देती नजर आ रही है। अब सुनने में आ रहा है कि सरकार एक साल पूरा होने पर नेताओं को लाल बत्ती जो पहले ही गुल हो चुकी है, दे सकती है। इसको लेकर कई नेताओं के चेहरे लाल-पीले हो रहे हैं।
बेचारे नेता कह रहे हैं कि केवल नाम की लाल बत्ती मिलनी है। गाड़ी पर बत्ती ने चमचमाना तो है नहीं, बस नाम की लाल बत्ती है। उस पर भी सरकार कई नखरे दिखा रही है।
चलो ये तो बात हुई उनकी जिनको लाल बत्ती की उम्मीद है। ये इतने लाल हो चुके हैं कि उनका रंग ही लाल पड़ गया। अब उन नेता जी की, जो इनको सपने दिखा रहे हैं। उनके कुछ चेले दूसरों की शरण में चले गए लाल बत्ती के चक्कर में। जो बचे हैं वो नेता जी का दिन-रात दिमाग खा रहे हैं। विल्कुल दीमक की तरह। उनके लिए अपने चेलों से जान छुटाना ही मुश्किल हो रहा है। उसका कारण यह है कि उनको सरकार में अपनी दाल गलती नजर नहीं आ रही है। सरकार बनने से पहले तो डंके की चोट पर कहा था। मैं दिलावाऊंगा लाल बत्ती। अब जब दिन नजदीक आ रहे हैं तो नेता जी पीले पड़ रहे हैं। उनका पीला रंग देखकर उनके चेले लाल हो रहे हैं।
एक तरफ लाल बत्ती की लालसा, दूसरी तरफ आका का पीला रंग। चेलों को दोनों के गुस्से लाल बना रहे हैं। पता नहीं त्रिवेंद्र सिंह रावत किसे लाल करेंगे और किसे पीला। सबकी आस अब नाम मात्र की लाल बत्ती के लिए अजय और टीएसआर पर ही टिकी हुई है। देखते हैं कौन लाल होता है और कौनी पीला।