जयपुर…
वैसे तो रिश्तों की कोई निर्धारित परिभाषा नहीं होती। शायद कोशिशें करने के बाद भी कोई खास परिभाषा गढ़ना मुश्किल ही होगा। बात ये नहीं है कि रिश्ता कोई उलझी हुई गुत्थी है, जिसे सुलझाया नहीं जा सकता हो। ‘रिश्ता‘ जीवन और समाज की सफलता का एक मानक है, जिसे कुछ शब्दों में बयां कर पाना संभव नहीं है। “रिश्ते खून के नहीं होते, रिश्ते एहसास के होते हैं।’’ अगर एहसास हो तो, अजनबी भी अपने होते हैं। अगर एहसास ही ना हो तो अपने भी अजनबी लगने लगते हैं। रिश्तों का बंधन किसी को बांध नहीं सकता। उनका जो एहसास है, वह किसी रिश्ते को बिखरने नहीं देता। बगैर एहसास के रिश्ते मजबूरी बन जाते हैं और फिर वो बोझ लगने लगते हैं। ऐसा ही रिश्ता सास और बहू का होता है। अक्सर आप और हम सास-बहू की तकरारों की बातें ही सुनते हैं। लेकिन, एक मामला ऐसा सामने आया है, जिसने रश्तिों के होने का एहसास कराया है और वास्तविकता भी यही है कि रिश्ते बनते ही एहसास से हैं। ‘‘क्योंकि सास भी कभी बहू थी’’ टीवी सीरियल तो खूब देखा होगा। उसमें सास-बहू के झगड़े और तकरार को दिख गया है। टीवी पर 80 प्रतिशत सीरियलों में सास-बहू की लड़ाई ही दिखाई जाती है। असल जिंदगी में इन टीवी के रिश्तों का बड़ा हस्तक्षेप है। लेकिन, आपको असल जिंदगी में घटी एक असल कहानी से रू-ब-रू कराते हैं। जिसे पढ़ने के बाद ‘‘क्योंकि सास भी कभी बहू थी’’ को भूल कर कहने लगेंगे कि…‘‘क्योंकि सास भी मां होती है…’’।
सास-बहू के रिश्ते में हमेशा से अनबन की खबरें देखने-सुनने को मिलती हैं, लेकिन राजस्थान में हुई ये घटना इस रिश्ते का एक अलग ही पहलू बयान करती है। ये कहानी बताती है कि वाकई एक सास बहू की मां बन सकती है। राजस्थान के बाड़मेर जिले में एक सास ने बहू को अपनी किडनी देकर उसकी जान बचाई। सास के किडनी दान में देने से ही बहू की जान बच पाई और आज वो जिंदा है। असल बात से अभी आप थोड़ी दूर हैं। अगर आप उस बात को सुनेंगे तो आप चैंक जाएंगे।
वन इंडिया की खबर के मुताबिक बाड़मेर के गांधीनगर की रहने वाली सोनिका की दोनों किडनियां खराब हो गई थीं। किडनी खराब होने पर डॉक्टर ने कहा कि उन्हें रिप्लेस करना पड़ेगा। सोनिका की किडनी रिप्लेसमेंट के लिए परिवार ने डोनर की तलाश की, लेकिन काफी ढूंढने के बाद भी उन्हें डोनर नहीं मिला। जब कहीं से उम्मीद नहीं दिखी तो सोनिका ने किडनी के लिए अपनी मां से कहा, लेकिन उनकी मां ने इससे इन्कार कर दिया। मां के किडनी देने से इन्कार करने पर सोनिका को लगा कि अब वो नहीं बच पाएंगी। उन्हें किसी तरफ से उम्मीद की कोई किरण नहीं दिख रही थी। उम्मीदों से हाथ धो बैठी सोनिका के लिए उसकी सास उनकी मां से कहीं बढ़कर निकली। सासू गेनी देवी ने अपनी किडनी देकर अपनी बहू की जान बचाई।
13 सितंबर को दिल्ली के अपोलो अस्पताल में सोनिका आप्रेशन किया गया। वो अब पूरी तरह से स्वस्थ हैं। सास के जीवनदान देने से सोनिया अब जन्मों-जन्मों के लिए उनका साथ मांग रही हैं। इस घटना ने यह भी साबित कर दिया कि …क्योंकि सास भी मां होती हैं। सोनिको कभी एहसास हो गया कि रिश्ते क्या होते हैं। यही वो बात है, जो रिश्तों को किसी एक परिभाषा में नहीं बांध पाते। यही वो बात है, जो बताती है कि रिश्ते एहसासों के होते हैं। खून के रिश्तों में एहसास ना हो तो वो केवल बोझ बनकर रह जाते हैं, जिनको जीवनभर ढोना पड़ता है।