देहरादून: उत्तराखंड कांग्रेस में गुटबाजी लगातार बढ़ती जा रही है। हरीश रावत के मुख्यमंत्री रहते हुए यह चरम पर थी। जिसका नतीजा 9 विधायकों की बगावत के रूप में देखा गया था। इस क्रम में पहले सतपाल महाराज ने भाजपा का दामन थामा, फिर विजय बहुगुणा, यशपाल आर्य और अन्य दिग्गज भगवा रंग में रंगे। उस वक्त भले ही हरीश रावत ने अपनी सूझबूझ से मोर्चा फतह कर लिया था, लेकिन अब एक बार फिर उन्हें अपनी ही पार्टी में शीत युद्ध का शिकार होना पड़ रहा है। कांग्रेस की राजनीति का एक बार फिर ध्रुवीकरण शुरू हो गया है। इस बार मोर्चा कुमाऊं की ही नेत्री इंदिरा हृदयेश ने संभाला है। साथ ही उन्हें अंदरखाने किशोर उपाध्याय और प्रीतम सिंह जैसे नेताओं का भी समर्थन मिल रहा है। वहीं कांग्रेस के अधिकतर वरिष्ठ नेता इंदिरा के ही समर्थक हैं। हालांकि, हरीश धामी और कुछ अन्य नेता पहाड़ों में हरीश रावत का पुरजोर समर्थन कर रहे हैं लेकिन इंदिरा का नेतृत्व हरीश रावत पर भारी पड़ सकता है।
इसका उदाहरण समय-समय पर देखने को मिल रहा है, जब कांग्रेस के विभिन्न कार्यक्रमों से हरीश रावत शहर में होने के बावजूद इनमें नजर नहीं आए। बहरहाल हरीश रावत अब प्रदेश में कमजोर पड़ते जा रहे हैं। फ़िलहाल पूर्व सीएम हरीश रावत इन दिनों प्रदेश में अपने वजूद को बचाने में लगे हैं। पहले विधानसभा चुनाव और उसके बाद थराली उपचुनाव की हार ने हरीश रावत को हाशिये पर ला खड़ा कर दिया है। लेकिन हरदा प्रदेश की राजनीति में अलग-अलग तरीके से अपनी उपस्थिति दर्ज कराने से नहीं चूक रहे हैं। बात चाहे काफल पार्टी की करें या फिर मैंगो पार्टी की, हरदा इस तरह की पार्टियों से प्रदेश में अपनी राजनीतिक जमीन को मजबूत करने में लगे हुए हैं। लेकिन इन दिनों हरदा अपनी ही पार्टी में थोड़ा अलग-थलग नजर आते हैं। पार्टी में चल रही गुटबाजी के कारण कई पार्टी नेता हरदा की उपस्थिति से असहज महसूस करने लगे हैं। हालाँकि पार्टी हाईकमान ने अभी भी हरीश रावत को तवज्जो दी है।