संसद के दोनों सदनों से तीन तलाक पर रोक लगाने का बिल पारित होना न केवल सरकार की राजनीतिक इच्छाशक्ति की ऐतिहासिक विजय है, बल्कि कहा जाए तो 30 जुलाई 2019 की तारीख भारत में रहने वाली मुस्लिम महिलाओं के जीवन में एक नई सुबह का आगाज हुआ । हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 2017 में ही इसे असंवैधानिक करार दिया था, लेकिन विपक्षी दलों के रवैये के चलते इसे एक कानून का रूप लेने के लिए दो साल लंबा इंतजार करना पड़ा है। तीन तलाक के खिलाफ मुस्लिम महिलाएं अपनी जंग जीत चुकी हैं। एक स्त्री के जीवन को पल भर में हिला देने वाला तीन तलाक जैसा मुद्दा एक गंभीर मसला है। किसी महिला की हंसती खेलती ज़िंदगी को पल भर में उजाड़ दे, उसे संभलने का एक भी मौका दिए बिना उसके सपनों को पल भर में ख़त्म कर दे, इस विधेयक की सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इसमें ‘तलाक’ को नहीं, बल्कि तलाक के एक अमानवीय तरीके ‘तीन तलाक’ को ही कानून के दायरे में लाया जा रहा है। जाहिर है इससे पुरुषों का तलाक देने का अधिकार खत्म नहीं हो रहा, बल्कि समुदाय विशेष की स्त्रियों के हितों की रक्षा करने का प्रयास किया जा रहा है, जिसे ‘मुस्लिम महिला विवाह अधिकार संरक्षण विधेयक’ नाम दिया गया।