बागेश्वर: उतराखंण्ड में सालों से जारी खनन के खेल में अवैध खनन करने वाले तो महज मोहरा हैं। खनन के असली खलनायक तो शासन और प्रशासन में बैठे अधिकारी हैं। सरकार चाहे भाजपा की रही हो या क्रांगेस की। दोनांे ने ही हाईर्कोट के निर्देशांे को तोड़-मरोड़कर उसकी आड़ में अवैध खनन की खुली छूट दी जा रही है।
पहाड़ी जिलों में भी खनन माफिया की पोबहार है। बागेश्वर की सरयू नदी और गौमती नदी पर भी अवैध खनन का खुला खेल जारी है। राज्य में खनन दो तरीकों से होता है। एक पट्टों के जरीये और दूसरा डी-सीलिंग यानी नदी के उपर से सिल्ट को उठाना।
कपकोट तहसील की बात करें तो कपकोट तहसील से 6 किमी की दूरी पर ही खनन कारोबारीयों ने ही सरयू को गदेरा बना दिया। आलम यह है कि खनन के नाम पर बीच नदी में बड़ी-बड़ी पोकलैंड और जेसीबी मशीनों से सरयू नदी का दोहन किया जा रहा है। स्थानीय निवासी हरीश उपाध्याय का कहना है कि जब तक अवसरवादी राजनीति चलेगी और बाहुुबलियों को सरकार का संरक्षण जब तक मिलता रहेगा तब, तक इस प्रकार खनन का खेल चलता रहेगा।
एसडीएम कपकोट का कहना है कि खनन पट्टा धारक को डी सीलिंग नदि आदी के उपरी सतह पर जमा सल्ट को हटाये जाने का पट्टा दिया गया है। समय-समय पर तहसीलदार के माध्यम से जांच करायी जाती है। खनन निर्धारित जगह पर ही हो रहा है। गरूड़ तहसील की गौमती नदी पर खनन माफिया पूर्ण रूप से सक्रीय हैं। यहां भी बीच नदी से खनन के नाम पर अवैध खनन किया जा रहा है। बावजूद इसके प्रशासन केवल हवाई दावे कर रहा है।