अल्मोड़ा: बसंत ऋतु में 1500 मीटर से अधिक ऊंचाई वाले हिमालयी क्षेत्र में खिलने वाला बुरांश के फूल सभी को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। बुरांश दिखने में ही सुंदर नहीं होता बल्कि, इसके कई लाभदाई गुण भी होते हैं। इसलिए प्राचीन काल से ही आयुर्वेद में बुरांश को महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है। रोडोडेंड्रोन प्रजाति के पेड़ में मात्र मार्च और अप्रैल सीजन में ही फूल खिलते हैं। इन फूलों का रंग लाल, गुलाबी और सफेद होता है। लेकिन लाल बुरांश सबसे ज्यादा औषधिय गुणों से भरपूर होता है। बुरांश का जूस हृदय रोग, किडनी, लिवर के अलावा रक्त कोशिकाओं को बढ़ाने और हड्डियों के सामान्य दर्द के लिए बहुत लाभदायी होता है। इसके गुणों को देखते हुए ही इसे उत्तराखण्ड के राज्य वृक्ष का दर्जा भी प्राप्त है। लेकिन गर्मीयां शुरू होने से पहले ही जंगलों में लग रही आग के कारण और इतने सारे औषधिय गुण होने के बावजूद भी बुरांश के पेडों पर संकट छाया हुआ है।
वहीं स्थानीय लोगों का कहना है कि, हमारे बुर्जुग भी बुरांश के जूस को हृदय व पेट सम्बन्धी कई बीमारीयों के इलाज के लिए इसका प्रयोग औषधि के रूप में करते थे। पहले पहाडी जगलों में हर तरफ बुरांश के पेड दिखाई देते थे, लेकिन आज जंगलों में लग रही आग के कारण बुरांश पर संकट मंडरा रहा है। सरकार को राज्य वृक्ष को बचाए रखने के लिए जगह-जगह पर बुरांश के पेडों का वृक्षारोपण करना चाहिए। जिससे यहां के लोगों को इससे रोजगार भी मिलेगा और प्रदेश का राजस्व भी बढेगा।
वहीं डाक्टरों का मानना है कि, गर्मी के समय बुरांश का जूस पीने से शरीर को ठण्डक मिलती है और इससे हृदय व पेट संम्बन्धी जैसी कई बीमारीयों में भी लाभ होता है। बुरांश को जूस या चटनी बना कर भी इसका सेवन किया जा सकता है।
अब सवाल ये उठता है कि आखिर केवल राज्य वृक्ष घोषित करने से ही यह सुंदर और औषधीय गुणों वाला बुरांश बच पायेगा। क्या लोगों और सरकार का कर्तव्य नहीं बनता कि, इस दुर्लभ पेड़ व फूल को जंगलों में लग रही आग से बचाया जाये, ताकि इसे विलुप्त होने से बचाया जा सके। ऐसे में जरूरत है कि, सरकार व लोग राज्य वृक्ष बुरांश के पेडों का अधिक-से-अधिक वृक्षारोपण करें, जिससे बुरांश के पेडों को भी बचाया जा सके और स्थानीय लोगों को इससे जोडकर रोजगार के अवसर भी सृजित किये जा सकें।