कश्मीर: लोकसभा चुनाव का शोर पूरे देश में चल रहा है। चुनावी शोर में नेताओं के भाषणों को हर रोज विश्लेषण होता है, लेकिन जिस तरह से राजनीतिक दलों के एजेंडे से महत्वपूर्ण मसले गायब हो रहे हैं। ठीक उसी तरह मीडिया भी असल मामलों को कहीं छोड़ दे रही है। भाषणों को विश्लेषण तो होता है, लेकिन उसमें मुद्दों की बात कम, चुनावी शोर की समीक्षा ज्यादा होती है। ऐसा ही एक अहम सवाल कश्मीरी हिन्दुओं का भी है। कश्मीरी हिन्दुओं को लेकर भाजपा हर बाद मुद्दा बनाती है, लेकिन इस बार वो चुनाव के केंद्र में नहीं है। भाषणों के उनका बस जिक्रभर कर दिया जाता है। लेकिन, एक मौका इस बार कश्मीरी पंडितों के पास भी है कि वो अपनी पसंदी की आवाज को संसद तक पहुंचाएं, जो उनके हक के लिए लड़े और उनकी आवाज को बुलंद करे।
दअरसल, इस बार अलगाववादी नेताओं ने चुनाव के बहिष्कार का एलान किया है। अगर अलगाव वादियों की बात पर लोग वोट डालने नहीं घरों से नहीं निकलते हैं, ऐसी स्थिति में विस्थापित कश्मीरियों के वोट सबसे अहम हो जाते हैं। कश्मीर में वर्तमान में विस्थापित कश्मीरी हिन्दुओं के 99000 हजार वोटर पंजीकृत हैं। अगर सभी ने वोट किए, तो वो चुनाव परिणामों को बड़े स्तर पर प्रभावित कर सकते हैं। उनके वोटों पर जीत-हार तय होती है।
कश्मीर के बारामुला जिले में 21136 विस्तापित कश्मीरी वोट हैं। अनंतनाग में 38356 वोटर और सबसे ज्यादा 39343 वोटर कश्मीर जिले में पंजीकृत हैं। इन तीनों ही जिलों के वोटर कश्मीर में लोकसभा सांसद का गणित बना भी सकते हैं और किसी की हार का कारण भी बन सकते हैं। कश्मीरी वोटर मौजूदा परिस्थियों में कश्मीर में की-वोटर है। उनके वोट केवल हार के अंतर को कम करने वाले नहीं। बजाय जीत तय करने वाले हैं।
विस्थापित कश्मीरी हिन्दुओं के पास इस समय बड़ा मौका है। जिस तरह से घाटी में माहौल नजर आ रहा है। उससे एक बात तो साफ है कि अलगाववादियों के एलान का असर तो साफतौर पर नजर आएगा। हालांकि चुनाव आयोग इस तरह की परिस्थ्यिों से निपटने के दावे जरूर कर रहा है। ऐसे में विस्थापित कश्मीरी हिन्दुओं को मौके की नजाकत को देखते हुए, अपने हक में खड़े उम्मीदवार के पक्ष में वोट करने चाहिए। जिससे संसद में उनकी आवज बुलंद हो सके।