रुद्रप्रयाग: सरकारें चाहें लोकतांत्रिक अधिकारों पर कितनी भी वंदिशें लगा दें मगर दिल का उबाल है कि बाहर आ ही जाता है। ऐसा ही कुछ होने जा रहा है प्रदेश में। सरकार ने हाई कोर्ट का हवाला देते हुए कर्मचारी संगठनों के आंदोलनों को भले ही प्रतिबंधित कर दिया हो मगर कर्मचारी हैं कि अपनी जायज मांगों को लेकर अपने जायज तरीके भी अपनाने लग गये हैं। यही कुछ होगा 31 जनवरी को प्रदेश में । जब सारे कर्मचारी सामुहिक अवकाश के जरिये सरकार को अपनी शक्ति का इजहार करवायेंगे और फिर 4 फरवरी को देहरादून में माहारैली के जरिये अपने आगामी मंसूबों से सरकार को इत्लाह करवायेंगे। आखिर क्या हैं कर्मचारियों की ये विशेष रणनीति बताते हैं आपको।
दरअसल में प्रदेश सरकार प्रदेश में कर्मचारियों के आन्दोलनों व प्रदर्शनों पर प्रतिबन्द्व लगा चुकी है और कर्मचारी संगठनों की जायज मांगों को भी सुनने को तैयार नहीं है। ऐसे में संगठनों ने अब अलग ही रणनीति तैयार कर ली है। अपने आकस्मिक अवकास के जरिये सरकार को उनकी गलतियों का अहशास करवाने की। उत्तराखण्ड अधिकारी कर्मचारी शिक्षक समन्वय समिति के पदाधिकारियों ने अपने सुनियोजित आंदोलन का आज आगाज कर दिया है। संगठन का कहना है कि सरकार अगर अपने द्वारा जारी किये गये आदेशों व संयुक्त वार्ताओं को भूलकर कर्मचारियों का उत्पीडन करेगी और आन्दोलन के नाम पर कोर्ट का हवाला देगी तो कर्मचारी भी असहयोग आंदोलन की तर्ज पर अपने अधिकारों की मांग करेगें। समन्वय समिति के पदाधिकारियों ने साफ किया कि अपनी मांगों को लेकर प्रदेश के सभी कर्मचारी आकस्मिक अवकास लेकर 31 जनवरी को जिला स्तर पर अपना विरोध दर्ज करेंगे और सरकार की तरफ से सकारात्मक कार्यवाही न होने पर 4 फरवारी को प्रदेश की राजधानी में विशाल आन्दोलन के जरिये सरकार को अपनी मागों की जानकारी देंगे।
कुल मिलाकर सरकारें चाहे संगठनों पर कितनी भी वंदिशें लगा दें और उन्हें कानूनों के डण्डों से हटाने के कितने भी प्रयास कर लें मगर आज भी नीतिगत ब्यवस्थाओं में साफ है कि अपने अधिकारों को लेकर हर संभव प्रयास किये जा सकते हैं तब चाहे वो आकस्मिक अवकाश हो या फिर कुछ और। अब तो सरकार को समझ लेना चाहिए कि प्रदेश में सब कुछ कानून के भरोशे नहीं चलना है बल्कि कई मसौदे ऐसे भी हैं जिन्हें आपसी सुलह व समझौते के आधार पर सुलझाया जा सकता है और प्रदेश को एक बडे आन्दोलन से बचाया जा सकता है।