कब टूटेंगी अवैध काॅलोनियां ?

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देहरादून : हाईकोर्ट की सख्ती के बाद राजधानी देहरादून में अतिक्रमण तोड़ने की कार्रवाई की जा रही है। ठीक है। अतिक्रमण तोड़िये, लेकिन रसूखदारों का भी तोड़िये। अब तक जो भी कार्रवाई हुई है। उसमें यह देखने में आया है कि बड़े संस्थानों खासकर निजी संस्थानों की तरफ पीला पंजा मुड़ने से कतरा रहा है। एक बात और क्या वोटों के लिए हर साल बसाई जाने वाली अवैध बस्तियां भी टूटेंगी या नहीं? रिस्पना नदी को पुनर्जीवित करने के लिए तो सरकार जोर लगा रही है, लेकिन नदी को नाला बनाने वाली अवैध बस्तियों को तोड़ने का कोई प्लान ही नहीं बनाया गया।
कब टूटेंगी अवैध काॅलोनियां ? 2 Hello Uttarakhand News »एमडीडीए अतिक्रमण के खिलाफ की जा रही कार्रवाई के लिए अपनी पीठ थपथपा रहा है, लेकिन अवैध बस्तियों को तोड़ने से अब तक कतराता ही रहा है। एमडीडीए को इन अवैध बस्तियों का पता भी है। बावजूद कार्रवाई नहीं की जाती। एमडीडीए और राजस्व विभाग की पोल भी इस अतिक्रमण अभियान के दौरान खुल रही है।
दरअसल, कई जगहों पर अतिक्रमण तोड़ने की कार्रवाई के दौरान लोग अपनी रजीस्ट्री दिखा रहे हैं। लोगों का कहना है कि जिस जगह पर निर्माण किया गया है। उस जगह की रजीस्ट्री उनके नाम है। जबकि एमडीडीए के अनुसार वह अतिक्रमण है। इससे एक बात तो साफ है कि भू-माफिया ने राजस्व विभाग के अधिकारियों के साथ मिलकर फर्जी ढंग से जमीनों रजीस्ट्री की है या फिर लोगों ने खुद ही गलत ढंग से रजीस्ट्री कराई है। ऐसे मामलों की जांच कराई जानी चाहिए।
सवाल एमडीडीए पर भी उठ रहा है कि जब नक्शा पास कराया जाता है, तब क्यों नहीं देखा जाता कि अवैध अतिक्रमण हो रहा है। अतिक्रमण होने के बाद एमडीडीए ने खुद से कभी कार्रवाई नहीं की। क्या हर बार हाईकोर्ट की सख्ती के बाद ही नींद टूटेगी। सरकार को यह भी संज्ञान में लेना चाहिए कि किसी के नाम पर फर्जी ढंग से कहां-कहां रजीस्ट्री की गई है। अवैध बस्तियां कहां-कहां बनी हैं। उनको तोड़ने की कार्रवाई क्यों नहीं की जा रही।
यह भी जांच का विषय होना चाहिए कि जो अवैध बस्तियां बस रही हैं। उनमें रहने वाले लोग कहां से आकर बस रहे हैं, और उनको बिजली और पानी के कनेक्शन कैसे मिल रहे हैं। एक माह पहले इस तरह का एक मामला सामने आ चुका है। बिहार से दो माह पहले ही देहरादून आए भिखारियों ने अवैध रूप से रहना तो शरू किया ही। साथ ही उनका विकलांग प्रमाण पत्र भी बन गया। कई ऐसे हैं, जिनके राशनकार्ड भी बन चुके हैं। सवाल यह है कि वो कौन लोग हैं, जो दो-तीन माह पहले देहरादून आए लोगों के इतने कम समय में राशन कार्ड और दूसरे प्रमाण पत्र बना दे रहे हैं।

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