प्रदीप रावत (रवांल्टा)
खेल में राजनीति की जरूरत नहीं होती नेता जी। लेकिन, हमारे खेल मंत्री जी तो इतने उत्साहित थे कि हाथ हिलाते हुए स्टेडियम पंहुच गए। लेकिन, उनका हाथ हिलाना काम नहीं आया। बेचारे मंत्री जी। हुआ यूं कि मैच के दौरान खेल मंत्री अरविंद पांडे अचानक ही बाउंड्रीलाइन के बाहर की ओर हाथ हिलाते हुए प्रकट हो गए। हाथ जोड़ते हुए। हाथ हिलाते हुए। खुद को पीएम नरेंद्र मोदी से कम नहीं समझ रहे थे। उनकी हाथ हिलाने की कला में पीएम मोदी जी का स्टाइल नजर आ रहा था। पर वह काम नहीं आया। एक तरफ से आए, दूसरी तरफ से चलते बने।
अब बताता हूं कि हुआ क्या था..? असल में अफगानिस्तान और बांग्लादेश के बीच दूसरे मैच में मैच का रोमांच चरम पर था। दर्शक मैच का आनंद ले रहे थे। इस बीच खेल मंत्री जी हाथ हिलाते हुए मैदान की बाउंड्री के बाहर से हाथ जोड़े प्रकट हुए। लोगों ने पहले उनकी ओर ध्यान ही नहीं दिया। जैसे ही मंत्री जी नजदीक पहुंचे। उनके दो-चार चमचों ने हाथ हिलाया। शायद ये वो लोग होंगे, जिनको मंत्री जी ने मैच का टिकट मुफ्त में दिया होगा। खैर कोई बात नहीं। थोड़ा-बहुत तो चलता ही है।
इस बीच खिलाड़ी ने चैका जड़ दिया। खूब शोर हुआ। दर्शक अपनी सीटों से खड़े होकर खिलाड़ियों का उत्साह बढ़ा रहे थे। मंत्री जी सोच रहे थे कि उनके स्वागत में हल्ला हो रहा है। पर कुछ ही समय में मंत्री जी को पता चल गया कि हल्ला उनके लिए नहीं खिलाड़ियों के लिए हो रहा है। बेचारे एक रास्ते से आए, दूसरे रास्ते से चले गए। सवाल उनके हाथ हिलाने पर नहीं है। वो जितनी मर्जी हाथ हिलाएं। हमें कोई फर्क नहीं पड़ता। उन दर्शकों की तरह, जो मैच देख रहे थे। उन दर्शकों की तरह, जिन्होंने मंत्री जी की हाथ हिलाने की कला का उत्साह वर्द्धन ही नहीं किया।
असल सवाल यह है कि क्या किसी अंतरराष्ट्रीय मैच के दौरान किसी मंत्री या दूसरे लोगों को इस तरह से मैदान के भीतर जाना चाहिए। जबकि वह पूरी तरह नियमों के विरुद्ध है। कुलमिलाकर मंत्री जी अपनी नेतागिरी चमकाने वहां पहुंचे थे। उनको आभार प्रकट करना चाहिए बीबीसीआई का, जिसने यह पहल की, जिसने अफगानिस्तान क्रिकेट बोर्ड को यह मैदान होमग्राउंड बनाने के लिए दिया। ठीक है श्रेय लेना चाहिए, लेकिन उसके और भी तरीके होते हैं। मैच के बीच में इस तरह श्रेय थोड़े लिया जाता है।
एक छोटा मगर जरूरी सवाल पुलिस के लिए भी। निशंदेह पुलिस ने अच्छी व्यवस्था बनाई थी, लेकिन बार-बार खिलाड़ियों के गडआउट के आसपास मंडराने के बजाय अगर कोई रणनीति बनानी होती तो उसके लिए कहीं दूसरी जगह भी जाया जा सकता था। मैच के दौरान ऐसे कई मौके आए, जब 15-20 पुलिसकर्मी, अधिकारी बांग्लादेश के डगआउट के आसपास ही मीटिंग करते नजर आए। इससे होता यह है कि खिलाड़ियों का ध्यान भंग हो जाता है। डगआउट किसी भी टीम का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा होता है।
जो भी हो मंत्री जी का हाथ हिलाना काम नहीं आया। ध्यान रखना मंत्री जी आगे से। कहीं आप अगली बार मैच हुआ। आप फूले ही ना समाएं मारे खुशी के और सीधे ही दौड़ पड़ें मैदान के बीचों-बीच, वहां हाथ हिलाने लगें। उस कला में आप थोड़ा अभी अपरिपक्व हैं। थोड़ा पक जाइये, फिर हाथ हिलाइए। और हां खेल के नियम और कायदों का भी ध्यान रखिएगा। वरना श्रेय लेने के चक्कर में कहीं आईसीसी और बीसीसीआई को गुस्सा आ गया तो, मेजबानी भी हाथ से जाने का खतरा रहता है। ठीक है आपने मेहनत की होगी, लेकिन वो आपका काम है। ऐसे ही कुछ अच्छे काम करते रहिए, लोग खुद ही श्रेय देंगे आपको। वो भी थैले भर-भर कर…